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बीजेपी-सहयोगी रिश्तों में दरार? 200 सीटों के दावे से बढ़ी चुनावी हलचल

यूपी में विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) को अभी लगभग दो साल का वक्त बाकी है मगर राजनीतिक तापमान अभी से बढ़ने लगा है। प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों पर वर्ष 2027 में होने वाले चुनाव को लेकर बड़े-बड़े दलों की रणनीतियाँ बनना शुरू हो चुकी हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) अपने विधायकों के कामकाज का ऑडिट कर रही है समाजवादी पार्टी (SP) कार्यकर्ताओं को गांव-गांव भेज रही है कांग्रेस भी सीटों के बंटवारे की बात कर रही है और बहुजन समाज पार्टी (BSP) में आकाश आनंद की सक्रिय वापसी ने चर्चा का नया दौर छेड़ दिया है।

इन सबके बीच योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के मुखिया डॉ. संजय निषाद अपने बयानों और संविधान यात्रा को लेकर खासा सुर्खियों में हैं। उनका दावा है कि उनकी पार्टी 200 से अधिक सीटों पर असर रखती है और आने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के सिंबल पर लड़ना चाहती है।

संविधान यात्रा: राजनीतिक जागरूकता या दबाव की रणनीति

डॉ. संजय निषाद बीते एक साल से ‘संविधान यात्रा’ निकाल रहे हैं जो सहारनपुर से शुरू होकर अब तक बुंदेलखंड पूर्वांचल और अवध के कई जिलों तक पहुँच चुकी है। इस यात्रा को सामाजिक न्याय पिछड़े वर्गों के अधिकार और राजनीतिक जागरूकता से जोड़ा जा रहा है। मगर इसके सियासी मायने भी उतने ही अहम हैं।

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हर जिले में मीडिया से बातचीत के दौरान संजय निषाद इस बात को दोहराते रहे हैं कि निषाद समाज का प्रभाव यूपी की 200 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर है। जालौन में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि अगर परिस्थितियाँ अनुकूल रहीं तो निषाद पार्टी इन सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी।

बीजेपी को चेतावनी या सलाह

डॉ. निषाद की यात्रा के दौरान एक और बात बार-बार सुनने को मिली बीजेपी को विभिषणों से दूर रहने की सलाह। ये बयान जितना प्रतीकात्मक है उतना ही तीखा भी। दरअसल निषाद की मंशा है कि बीजेपी उन नेताओं पर ज़्यादा भरोसा न करे जो हाल ही में दूसरी पार्टियों से आए हैं बल्कि अपने पुराने सहयोगियों और ज़मीनी नेताओं को प्राथमिकता दे।

उनका ये रुख यह संकेत देता है कि निषाद पार्टी अब बीजेपी के जूनियर सहयोगी की भूमिका से संतुष्ट नहीं है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में सीटों की माँग पूरी न होने के कारण जो नाराजगी उपजी थी वह अब विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) की तैयारियों में कहीं न कहीं दिखने लगी है।

अपने सिंबल पर लड़ना चाहती है निषाद पार्टी

ये कोई साधारण बात नहीं कि यूपी सरकार में मंत्री होते हुए भी संजय निषाद बार-बार इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि उनकी पार्टी अपने सिंबल पर चुनाव लड़ना चाहती है। इसका मतलब साफ है कि वे एक स्वतंत्र पहचान गढ़ना चाहते हैं भले ही बीजेपी के साथ गठबंधन बना रहे।

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2022 के विधानसभा इलेक्शन में बीजेपी गठबंधन के तहत लड़ते हुए निषाद पार्टी ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 पर जीत दर्ज की। मगर अब जब पार्टी का जनाधार बढ़ा है और सामाजिक प्रभाव का दावा ज़ोर पकड़ चुका है तो वे अपने दम पर अधिक सीटों की माँग कर रहे हैं।

क्या बीजेपी मानेगी संजय निषाद की बात

ये सवाल अब राजनीति के गलियारों में तेजी से गूंज रहा है। क्या बीजेपी 2027 के चुनाव (UP Assembly Election) में अपने सहयोगी को इतनी बड़ी संख्या में सीटें दे पाएगी? खासकर तब जब खुद बीजेपी को भी सीटों के लिए सघन रणनीति बनानी है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि संजय निषाद का यह दावा केवल सीटों की माँग नहीं है बल्कि एक ‘बर्गेनिंग पोजिशन’ है यानी बातचीत में खुद को मजबूत करने का तरीका। वे जानते हैं कि 200 सीटों पर चुनाव लड़ना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं मगर यदि वे 50-60 सीटों पर भी उतरते हैं तो उनकी पार्टी ‘किंगमेकर’ की भूमिका में आ सकती है।

विपक्षी दलों की रणनीति: मैदान में कौन किस रूप में

समाजवादी पार्टी: अखिलेश यादव की पार्टी सत्ता में वापसी के लिए हर संभव कोशिश कर रही है। जातिगत समीकरणों को मजबूत करने के साथ-साथ बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने पर ज़ोर है। निषाद समुदाय को भी साधने के लिए SP की कोशिशें तेज़ हो सकती हैं खासकर यदि निषाद पार्टी बीजेपी से अलग रास्ता अपनाती है।

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कांग्रेस: उत्तर प्रदेश में लंबे समय से हाशिए पर चल रही कांग्रेस भी अब सीटों के बंटवारे को लेकर मुखर है। हालांकि पार्टी का जनाधार सीमित है मगर विपक्षी गठजोड़ की संभावना में वह निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

बसपा: आकाश आनंद की सक्रियता ने बसपा में नई जान फूंकी है। अगर वे युवाओं और दलितों को जोड़ने में सफल रहे तो बसपा की वापसी को नकारा नहीं जा सकता।

छोटे दल बड़ा खेल: क्षेत्रीय प्रभाव और गठबंधन की राजनीति

उत्तर प्रदेश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका कभी भी कमतर नहीं रही। निषाद पार्टी के अलावा अपना दल सुभासपा जन अधिकार पार्टी निर्दलीय उम्मीदवार जैसे तत्व भी समीकरण बिगाड़ने या बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

इन दलों का महत्व तब और बढ़ जाता है जब किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिले। ऐसे में बीजेपी हो या SP किसी को भी सरकार बनाने के लिए छोटे दलों की जरूरत पड़ सकती है।

क्या निषाद पार्टी बनेगी गेमचेंजर

डॉ. संजय निषाद की पार्टी अब खुद को केवल एक जातीय संगठन के तौर पर नहीं बल्कि सामाजिक न्याय की मांग करने वाले दल के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रही है। यदि यह रणनीति सफल होती है और वे सीटों की संख्या के साथ-साथ जीत का प्रतिशत भी बढ़ाते हैं तो 2027 के चुनाव में उनका कद काफी ऊँचा हो सकता है।

इसका असर बीजेपी के अंदरूनी समीकरणों पर भी पड़ेगा क्योंकि अन्य सहयोगी दल भी इस तरह से दबाव की राजनीति अपना सकते हैं।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2027 (UP Assembly Election) अभी दूर है मगर सभी दलों की गतिविधियाँ इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि राजनीतिक समरभूमि तैयार हो चुकी है। संजय निषाद की संविधान यात्रा और उनके बयानों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह चुनाव केवल बीजेपी बनाम SP या कांग्रेस बनाम BSP नहीं होने वाला। यह गठबंधन जातीय समीकरण और क्षेत्रीय प्रभाव के जटिल खेल का संग्राम होगा।

निषाद पार्टी जैसे सहयोगी दलों का रुख तय करेगा कि यूपी की सत्ता की चाबी किसके हाथ में जाएगी। और बीजेपी को भी अब यह तय करना होगा कि वह अपने पुराने साथियों को कितना सम्मान देती है और कितना मौका।

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