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CM को बधाई के बहाने विपक्ष की रणनीति, क्या अखिलेश यादव ने छोड़ा एक पॉलिटिकल ट्रेल

पांच जून की वो सुबह उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में धूप हल्की-सी धुंध के परदे से छनकर उतर रही थी। आसमान में पक्षियों की चहचहाहट और पुराने सरकारी भवनों के गलियारों में गूंजती हलचलें इस बात का संकेत थीं कि यह दिन कुछ खास है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्मदिन ( Yogi Adityanath Birthday) एक ऐसा दिन जब सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों तक बधाइयों का सिलसिला पूरे शबाब पर होता है।

पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तक देश के शीर्ष नेताओं ने ट्वीट्स और पोस्ट्स के ज़रिए मुख्यमंत्री को शुभकामनाएं दीं। हर संदेश में औपचारिकता और राजनीतिक मर्यादा का संतुलित संगम दिखाई दे रहा था। मुख्यमंत्रियों की कतार, जिनमें उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्यों के नेता शामिल थे, वो भी पीछे नहीं रही।

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मगर इस पूरे समावेशी उत्सव में एक बधाई संदेश ऐसा था, जिसने इस पूरे राजनीतिक समंदर में हलचल की लहरें पैदा कर दीं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा भेजी गई यह बधाई न केवल समय के लिहाज़ से विलंबित थी बल्कि शब्दों की बनावट में भी इतनी परतदार थी कि उस पर राजनीतिक विश्लेषकों से लेकर आम जनता तक सबकी नज़र टिक गई।

बधाई देर से,  मगर शब्दों में छिपा अर्थ गहराई से

रात के 10 बजकर 28 मिनट जब देश के अधिकांश नेता बधाई दे चुके थे और ट्विटर की टिमटिमाती स्क्रॉलिंग में शुभकामनाओं की चहचहाहट थमने लगी थी, तभी अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav Congratulations) का ट्वीट ‘X’ पर प्रकट हुआ। उसमें लिखा था कि मा. आदित्यनाथ जी को जन्मदिन की सौहार्दपूर्ण मुबारकबाद!

इस संक्षिप्त  मगर बहुस्तरीय वाक्य ने जैसे किसी शांत जलाशय में कोई पत्थर फेंक दिया हो। उथले शब्दों के नीचे जो भावनाएं और संकेत छिपे थे, उन्होंने एक पूरी बहस को जन्म दे दिया।

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सवाल उठने लगे आख़िर क्यों अखिलेश ने योगी के नाम का जिक्र नहीं किया? क्यों ‘सीएम योगी’ की जगह ‘मा. आदित्यनाथ जी’ लिखा गया? (UP CM Congratulations) और सबसे ज़्यादा चर्चा का विषय बना ‘सौहार्दपूर्ण’ शब्द जिसे लेकर राजनीतिक विश्लेषकों और विरोधियों ने तरह-तरह के निहितार्थ निकालने शुरू कर दिए।

लंदन से आई बधाई या समय का एक सांकेतिक संकेत

जब मीडिया के कैमरे, माइक्रोफोन और टेलीप्रॉम्प्ट्स ने अखिलेश से इस विलंबित बधाई का कारण पूछा, तो उनका जवाब उतना ही चौंकाने वाला था जितना शांत। उन्होंने कहा, “मैं उस वक्त लंदन में था। वहां के समयानुसार शुभकामनाएं दी गई थीं। और मैंने व्यक्ति को बधाई दी थी, पद को नहीं।”

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उनके इस उत्तर में एक प्रकार की विदेशी हवा की ठंडक थी,  मगर राजनीतिक गलियारों में यह कथन गर्म हवाओं की तरह फैल गया। क्या यह मात्र समय का फर्क था या फिर एक महीन राजनीतिक रणनीति? अखिलेश का ‘व्यक्ति को बधाई’ देना इस ओर इशारा कर रहा था कि वे पद और व्यक्ति के बीच की रेखा को सावधानी से खींच रहे थे एक रेखा जो राजनीति में कभी-कभी तलवार की धार बन जाती है।

‘सौहार्दपूर्ण’ शब्द जो तलवार की तरह चुभ गया

‘सौहार्दपूर्ण’ ये एक ऐसा शब्द है जिसे आम तौर पर मैत्री, भाईचारे और सकारात्मक संबंधों के प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता है।  मगर जब यह शब्द अखिलेश यादव की जुबान से आता है, तो उसमें राजनीतिक व्यंग्य का छौंक लग जाता है। यह वही शब्द है जो वह पहले भी योगी आदित्यनाथ की सरकार पर आरोप लगाते समय कई बार दोहरा चुके हैं खासकर जब बात सांप्रदायिक तनावों, धार्मिक ध्रुवीकरण या सामाजिक टकरावों की होती है।

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इस बार जब उन्होंने यही शब्द एक बधाई संदेश में प्रयुक्त किया, तो ऐसा प्रतीत हुआ मानो उस रेशमी शब्द में कांटों की चुपचाप बुनाई कर दी गई हो।

लखनऊ के राजनीतिक गलियारों में हलचल

राजधानी के पॉश प्रेस क्लब से लेकर विधान भवन के विशाल परिसर तक, चाय की दुकानों से लेकर समाचार चैनलों के डिबेट सेट्स तक हर जगह बस यही चर्चा थी। क्या यह बधाई वास्तव में शुभकामनाओं से भरी थी या फिर राजनीतिक चतुराई का एक उदाहरण? किसी ने इसे शिष्टाचार की मिसाल कहा, तो किसी ने तंज की मिसाल।

राजनीतिक विशेषज्ञों ने ट्वीट dissect करना शुरू कर दिया, जैसे किसी पुरातत्वविद् प्राचीन शिलालेख पढ़ रहा हो हर अक्षर, हर विराम चिह्न में छिपे संकेत तलाशते हुए।

अब्बास अंसारी और जातिगत समीकरणों की चिंगारी

बधाई की इस राजनीति के बीच अखिलेश यादव एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाई दिए, जहां मऊ के पूर्व विधायक अब्बास अंसारी की सदस्यता (Abbas Ansari Membership) समाप्त होने पर उन्होंने तीखा प्रहार किया। उनकी आवाज़ में वह कड़वाहट थी जो तब निकलती है जब किसी नेता को लगता है कि न्याय की देवी की आंखों पर लगे पट्टी में भेदभाव की दरारें आ गई हैं।

उन्होंने कहा कि अब्बास अंसारी की सदस्यता सरकार ने जानबूझकर ली है।  जो लोग दूसरों से DNA मांगते फिरते हैं, उनकी सदस्यता क्यों नहीं जा रही? ये बयान सीधा था,  मगर उसकी जड़ें प्रदेश की जटिल जातीय और धार्मिक राजनीति में गहराई तक धंसी हुई थीं।

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उनका यह बयान प्रदेश की राजनीति में बहुचर्चित ‘जाति बनाम योग्यता’ और ‘धर्म बनाम विकास’ की बहस को फिर से उजागर कर गया। मगर अखिलेश का भाषण केवल आलोचना तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने भविष्य की योजनाओं की ओर भी इशारा किया ऐसे सपनों की ओर, जिनमें ऐतिहासिक गौरव और सांस्कृतिक धरोहर की चमक थी।

उन्होंने कहा कि हमारी सरकार आने पर हम आगरा में छत्रपति शिवाजी महाराज का ऐतिहासिक म्यूजियम बनाएंगे। लखनऊ के रिवर फ्रंट पर उनकी एक अत्यंत भव्य प्रतिमा स्थापित की जाएगी, जिसमें शिवाजी महाराज स्वर्ण सिंहासन पर बैठे होंगे।

 

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