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सोने की मूर्तियों से अखिलेश यादव की सियासी चाल, क्या बीजेपी की काट मिल गई

UP Politics: उत्तर प्रदेश की सियासत फिर से गर्म हो गई है। वजह साफ है साल 2027 के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Election 2027)। सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके हैं। जहां एक ओर नए वादों की झड़ी लगी है। वहीं दूसरी ओर वादाखिलाफी के आरोप भी खूब लग रहे हैं।

इस सियासी समर में सबसे दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल रहा है समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच। खासकर अखिलेश यादव और केशव प्रसाद मौर्य के बयानों में जिस तरह से बयानवीरता दिखाई दे रही है वो आने वाले राजनीतिक मंजर की झलक दे रही है।

सोने की मूर्तियों से सजी सियासत

बीते कुछ दिनों में अखिलेश यादव ने जो ऐलान किए हैं उन्होंने सियासी पारा चढ़ा दिया है। महज 10 दिनों में तीन बड़े ऐलान और वो भी ‘सोने की मूर्तियों’ (Akhilesh Yadav Statue Promises) को लेकर।

पहला ऐलान लखनऊ में गोमती नदी के किनारे सिंहासन पर बैठी शिवाजी महाराज की सोने की प्रतिमा दूसरा ऐलान महाराजा सुहेलदेव (Suheldev statue politics) की सोने की मूर्ति और अब तीसरा कन्नौज में सम्राट हर्षवर्धन की सोने की प्रतिमा। तीनों ही घोषणाएं सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से बेहद रणनीतिक मानी जा रही हैं।

सम्राट हर्षवर्धन से लेकर महाराजा सुहेलदेव तक

रविवार को अपने संसदीय क्षेत्र कन्नौज पहुंचे सपा चीफ अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने एलान किया कि अगर समाजवादी पार्टी की सरकार बनती है तो कन्नौज में सम्राट हर्षवर्धन की सोने की प्रतिमा लगाई जाएगी। ये बयान तब आया जब स्थानीय प्रशासन ने एक चौराहे का नाम अहिल्याबाई होल्कर के नाम पर करने का निर्णय लिया था।

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इसके पहले बहराइच में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महाराजा सुहेलदेव की कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया। इसका जवाब देते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि उनकी सरकार आने पर लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट पर सुहेलदेव की सोने की प्रतिमा लगाई जाएगी।

और फिर 6 जून को आगरा में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने शिवाजी महाराज के सम्मान में एक भव्य संग्रहालय और सोने का सिंहासन बनाने की बात कही थी।

क्या है समाजवादी पार्टी की रणनीति (Samajwadi Party Strategy)

राजनीति (UP Politics) में किसी भी कदम के पीछे रणनीति जरूर होती है। यहां भी कुछ ऐसा ही है। बीजेपी उत्तर प्रदेश में राजभर कुशवाहा मौर्य और पिछड़े वर्गों (backward class vote bank) को साधने की कोशिश में लगी है। महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा और सुहेलदेव एक्सप्रेस जैसी योजनाएं इसी रणनीति का हिस्सा हैं।

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अखिलेश यादव इस समीकरण को भांपते हुए पिछड़ी जातियों के सामाजिक नायकों को केंद्र में लाकर बीजेपी की रणनीति को काटने की कोशिश कर रहे हैं।

विशेषज्ञों की मानें तो उत्तर प्रदेश में करीब 18 जिले और 30 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां राजभर वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। साल 2022 के विधानसभा चुनाव (UP Election) में सुभासपा के साथ गठबंधन करने से सपा को फायदा भी मिला था। अब बीजेपी अपनी पुरानी गलती दोहराना नहीं चाहती।

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