नए डीजीपी की ताजपोशी पर अखिलेश यादव का तंज, क्या राजीव कृष्ण तोड़ पाएंगे प्रशांत कुमार का बुना हुआ ‘मायाजाल’
सपा चीफ अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने शनिवार को यूपी के नए डीजीपी की नियुक्ति (UP DGP appointment) पर प्रतिक्रिया देते हुए एक बार फिर से राज्य की कानून-व्यवस्था की समस्याओं और राजनीतिक रंगरूटों की गहराईयों को उजागर किया। उनके शब्द न केवल एक सामान्य टिप्पणी थे बल्कि उन परतों का खुलासा कर रहे थे जिनके भीतर यूपी की पुलिस व्यवस्था की पुरानी जंजीरें गहराई से बंधी हुई हैं।
पुराने वाले डीजीपी पर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने जो कहा चर्चा का विषय बन गया
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने कहा “पुराने वाले डीजीपी पूरे प्रदेश में जंजाल बुनकर गए हैं” जैसे किसी बुने हुए जाल की बात करते हुए जो हर एक को फंसा ले एक ऐसा मायाजाल जिसमें सच और न्याय दोनों उलझे हुए हों। उनका सवाल अब यह था कि नए डीजीपी (UP DGP appointment) इस जंजाल से मुक्त होकर निष्पक्ष न्याय कर पाएंगे या नहीं। उनकी बातों में एक तरह की उम्मीद और संशय दोनों की गूंज थी जो यूपी की सियासी और प्रशासनिक परिस्थिति की कड़वाहट को बयां कर रही थी।
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यूपी सरकार ने राजीव कृष्ण को प्रदेश के नए डीजीपी के रूप में नियुक्त किया है। 1991 बैच के आईपीएस अफसर राजीव कृष्ण (new DGP Rajiv Krishna) की ये नई जिम्मेदारी उनके लिए एक नया अध्याय खोलती है। वह एक ऐसे दौर में पुलिस सेवा में आए थे जब तकनीक और पारंपरिक पुलिसिंग के बीच का फासला तेजी से घट रहा था और उन्होंने हाईटेक पुलिसिंग के विशेषज्ञ के रूप में खुद को साबित किया है। उनकी पृष्ठभूमि जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग की डिग्री भी शामिल है उन्हें परंपरागत पुलिसिंग से हटकर नए युग के लिए तैयार करती है। मथुरा इटावा आगरा नोएडा और लखनऊ जैसे महत्वपूर्ण जिलों में एसपी और एसएसपी के पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी कार्यशैली और नेतृत्व की छवि बनाई है जो अब पूरे प्रदेश के लिए नए उम्मीद के साथ जुड़ी है।
यूपी के मौजूदा डीजीपी प्रशांत कुमार आज ही अपने पद से रिटायर हो गए हैं। उनका कार्यकाल 31 मई शाम 5 बजे तक था और पूरे प्रदेश की नजरें इस बात पर थीं कि उनका सेवा विस्तार होगा या नहीं। मगर ऐसा नहीं हुआ। प्रशांत कुमार की विदाई को केवल एक औपचारिक प्रक्रिया से ज्यादा कुछ माना गया। उनकी कार्यशैली और निर्णयों पर सवाल उठते रहे हैं। उनके जाने के पीछे एक गहरे सियासी और प्रशासनिक कारण भी है जो यूपी की कानून-व्यवस्था की जटिलता को समझने के लिए जरूरी है।
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने प्रशांत कुमार के रिटायरमेंट पर जो तंज कसा वह केवल एक आलोचना नहीं थी बल्कि एक तीखी टिप्पणी थी जो उनके कामकाज के प्रति गहरी निराशा को दर्शाती है। उन्होंने कहा “आज जाते-जाते वो जरूर सोच रहे होंगे कि उन्हें क्या मिला जो हर गलत को सही साबित करते रहे। यदि व्यक्ति की जगह संविधान और विधान के प्रति निष्ठावान रहते तो कम-से-कम अपनी निगाह में तो सम्मान पाते।” यह शब्द एक ऐसे अधिकारी की तस्वीर खींचते हैं जो अपनी जिम्मेदारियों के बजाय सत्ता और राजनीतिक दबावों के चलते अपने कर्तव्यों से भटक गया हो। उनकी यह टिप्पणी एक प्रकार से न्याय की आस्था और प्रशासनिक ईमानदारी के संकट की तरफ इशारा कर रही थी।
पूर्व सीएम अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के पोस्ट में यह भी लिखा था “यूपी को एक और कार्यवाहक डीजीपी मिला अब देखना ये है कि वो (प्रशांत कुमार) जो जंजाल पूरे प्रदेश में बुनकर गए हैं नए वाले उससे मुक्त होकर निष्पक्ष रूप से इंसाफ कर पाते हैं या फिर उसी जाल के मायाजाल में फंसकर ये भी सियासत का शिकार होकर रह जाते हैं।” ये बयान न केवल प्रशांत कुमार के कार्यकाल की आलोचना करता है बल्कि नए डीजीपी के सामने आने वाली चुनौतियों की गंभीरता को भी स्पष्ट करता है। यह एक भावुक अपील है कि न्याय व्यवस्था को राजनीतिक दलों की लड़ाई से ऊपर उठाना चाहिए ताकि आम जनता को वास्तविक सुरक्षा और न्याय मिल सके।
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उन्होंने आगे कहा “दिल्ली-लखनऊ की लड़ाई का खामियाजा यूपी की जनता और बदहाल कानून-व्यवस्था क्यों झेले? जब ‘डबल इंजन’ मिलकर एक अधिकारी नहीं चुन सकते तो भला देश-प्रदेश क्या चलाएंगे।” यह सवाल राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था के बीच के कशमकश को दर्शाता है। ‘डबल इंजन’ सरकारों (double engine government) के दावे होते हैं कि वे विकास और कानून व्यवस्था दोनों में महारत रखते हैं मगर इन तकरारों की आड़ में सामान्य नागरिकों को ही सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
जानें कौन हैं राजीव कृष्ण (Know who is Rajiv Krishna)
अब सवाल उठता है कि कौन हैं वो राजीव कृष्ण जिनके कंधों पर उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी के तौर पर पूरे प्रदेश की कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी आ गई है? 26 जून 1969 को गौतमबुद्ध नगर में जन्मे राजीव कृष्ण का जीवन परिचय किसी प्रेरणादायक कहानी से कम नहीं। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन में बीई की डिग्री हासिल की जो यह दर्शाता है कि उनका दृष्टिकोण तकनीकी और आधुनिक था। 1991 में पुलिस सेवा में शामिल होकर उन्होंने तकनीक के इस्तेमाल से अपराध नियंत्रण और जांच प्रक्रिया में सुधार लाने की दिशा में कई कदम उठाए। उनकी विशेषज्ञता हाईटेक पुलिसिंग में रही है जिससे पता चलता है कि वे केवल पारंपरिक पुलिसिंग के दायरे में नहीं बंधे बल्कि नए युग की चुनौतियों को समझते हैं।
उनका करियर कई बड़े और संवेदनशील जिलों जैसे मथुरा इटावा आगरा नोएडा और लखनऊ में एसपी और एसएसपी के पदों पर बिताया गया। इन जिलों में काम करते हुए उन्होंने न केवल कानून-व्यवस्था को बेहतर बनाने का प्रयास किया बल्कि स्थानीय सामाजिक-राजनीतिक गतिशीलताओं को भी बखूबी समझा। यह अनुभव उनके नेतृत्व कौशल को और परिपक्व करता है जो उन्हें प्रदेश के डीजीपी पद के लिए उपयुक्त बनाता है।
नए डीजीपी के सामने बड़ी चुनौती
राजीव कृष्ण के कार्यभार संभालते ही उनके सामने एक जटिल और चुनौतीपूर्ण माहौल है। उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था में फैली राजनीतिक हस्तक्षेप (political interference law and order) की वेब को समझना और उससे बाहर निकलने की राह तलाशना उनकी पहली प्राथमिकता होगी। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की टिप्पणी जैसे ही एक चेतावनी की तरह गूंजती है कि नए डीजीपी को पुराने जंजाल में फंसने से बचना होगा और निष्पक्ष रहना होगा।
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की प्रतिक्रिया और यूपी प्रशासनिक संकट की सजीव तस्वीर
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष की ये प्रतिक्रिया केवल एक राजनीतिक बयान नहीं बल्कि राज्य के प्रशासनिक संकट की एक सजीव तस्वीर है। यह हमें उस गहरे संकट की याद दिलाती है जहां कानून और व्यवस्था की जिम्मेदारी एक ओर तो न्याय की उम्मीदों से जुड़ी है वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दबाव और खेल के बीच उलझी हुई है। अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की बातें राजीव कृष्ण के पद ग्रहण और प्रशांत कुमार के विदाई का सिलसिला इस कहानी को एक जीवंत सांस लेने वाली राजनीतिक और सामाजिक यथार्थ के रूप में सामने लाता है।
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अंततः उत्तर प्रदेश के नए डीजीपी के कार्यकाल की शुरुआत एक नए अध्याय की शुरुआत है। जहां पुराने जंजाल के टूटने और एक नई उम्मीद के अंकुर फूटने का इंतजार है। जैसे पुरानी जंजीरों को तोड़कर नया सूरज उगता है वैसे ही इस नए नेतृत्व से भी प्रदेश की कानून-व्यवस्था में सुधार और निष्पक्ष न्याय की उम्मीदें बंधी हैं। आवाम की निगाहें अब राजीव कृष्ण पर टिकी हैं कि क्या वे इस भारी जिम्मेदारी को सही मायनों में निभा पाएंगे या फिर पुरानी राजनीति (UP politics) और जाल उन्हें भी घेर लेगा।