जाति जनगणना: बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक या कांग्रेस की जीत
भारत में जाति आधारित गणना हमेशा से एक अहम और राजनीतिक मुद्दा रहा है। हाल ही में कांग्रेस ने सरकार के फैसले का स्वागत किया कि आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल किया जाएगा। ये कदम कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की निरंतर उठाई गई मांगों का परिणाम है और अब यह एक नई राजनीतिक दिशा में मोड़ ले रहा है।
कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी ने जाति सर्वे को सामाजिक न्याय और गरीब वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक अहम मुद्दा बनाया था, जिसे उन्होंने चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। अब जब सरकार ने जाति जनगणना की घोषणा की है, तो यह एक सांस्कृतिक मुद्दे से ज्यादा राजनीतिक रणनीति बन गया है।
इस फैसले के प्रमुख पहलू पर एक नजर
गांधी को राजनीतिक रूप से वश में करना: बीजेपी ने जाति सर्वे पर सहमति जताकर राहुल गांधी को उनके मुख्य राजनीतिक हथियार से वश में करने की कोशिश की है।
राहुल गांधी के ओबीसी एजेंडे को कमजोर करना: बीजेपी की कोशिश राहुल गांधी की ओबीसी आधारित राजनीति को कमजोर करने की है, ताकि वह ओबीसी समुदाय में अपनी पकड़ मजबूत कर सके।
बिहार में विपक्ष को कमजोर करना: जाति सर्वे का असर चुनावी राज्य बिहार में सबसे अधिक हो सकता है, जहां जाति आधारित राजनीति अहम भूमिका निभाती है। बीजेपी इसे एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।
श्रेय की होड़: कांग्रेस इस कदम को अपनी जीत मानकर इसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करेगी, हालांकि इसे श्रेय लेना उसके लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि बीजेपी का भी इस मुद्दे पर फायदा हो सकता है।
कांग्रेस का दबाव बनाए रखना: कांग्रेस इस मुद्दे पर सरकार से जाति सर्वे के आंकड़े जारी करने की मांग कर सकती है और इसके आधार पर हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए नीतियां बना सकती है।
कांग्रेस और ओबीसी के हितों की रक्षा: कांग्रेस ओबीसी वर्ग के हितों को लेकर अपनी राजनीति चला रही है, जबकि बीजेपी इस कदम का फायदा ओबीसी समुदाय से समर्थन हासिल करने के लिए उठा सकती है।
जाति सर्वे का ये प्रकरण अब भारतीय सियासत का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है। कांग्रेस ने इसे अपने मुख्य सियासी मुद्दे के रूप में उठाया है। तो वहीं भाजपा ने इसे अपने तरीके से संभालने की कोशिश की है। अब ये देखने में मजा आएगा कि इस मुद्दे पर दोनों प्रमुख दल अपनी स्थिति को कैसे मजबूत करते हैं और ये जाति आधारित गणना कितनी प्रभावी तरीके से लागू होती है। आने वाले लोकसभा चुनावों में ये मुद्दा एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है और इसे लेकर सियासी कुनबों के बीच संघर्ष अभी और गहरा हो सकता है।