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आम आदमी को हथियार लाइसेंस कैसे मिलता है, जानें क्या है प्रक्रिया

legal way to keep arms: यदि किसी जिले या शहर में सख्त नीति लागू की जाती है और शस्त्र लाइसेंस जारी न करने का निर्णय लिया जाता है, तो भी नागरिक भ्रष्टाचार के माध्यम से अन्य तरीकों से और राजनीतिक रूप से अनुकूल क्षेत्रों से शस्त्र लाइसेंस प्राप्त करते हैं, जिनका उपयोग पूरे देश में किया जा सकता है।

अपराधियों ने उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों से बहुत सारे हथियार प्राप्त किए हैं। कुछ साल पहले कश्मीर से बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के माध्यम से शस्त्र लाइसेंस जारी (Arms license corruption) किए गए थे। उन्हें राजनीतिक दबाव या भ्रष्टाचार के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। उन्हें देश में कहीं भी इस्तेमाल करने के लिए लाइसेंस दिया जाता है। आज यही लोग उन्हें लेकर मुंबई और पुणे जैसे बड़े शहरों में घूमते हैं।

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पुणे की वैष्णवी हगावने ने दहेज के लिए अपने ससुराल वालों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के बाद आत्महत्या कर ली। इस दहेज बलिदान ने महाराष्ट्र को हिलाकर रख दिया। अब यह पता चला है कि उसके पति और देवर ने गलत जानकारी देकर शस्त्र लाइसेंस (arms license) प्राप्त किया था। इस संबंध में मामला दर्ज किया गया है और कार्रवाई की गई है। पुणे पुलिस द्वारा प्राप्त पिस्तौल लाइसेंस की जांच चल रही है। आपको शस्त्र लाइसेंस कैसे मिलते हैं, इसकी प्रक्रिया क्या है, क्या कोई भी आसानी से शस्त्र लाइसेंस (arms license process) प्राप्त कर सकता है? आम आदमी के मन में इस बारे में कई सवाल रहे होंगे।

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आर्म्स एक्ट (Arms Act) के अनुसार, जिस जिले में पुलिस कमिश्नरेट है, वहां जिला कलेक्टर और पुलिस कमिश्नर को हथियार परमिट जारी करने का अधिकार है। यह दो तरह का होता है, इंट्रा-डिस्ट्रिक्ट और एक्स्ट्रा-डिस्ट्रिक्ट। सबसे पहले, आवेदक द्वारा हथियार रखने का कारण और उसकी जान को खतरा होने की पुष्टि की जाती है। जांच के बाद एक निश्चित अवधि के लिए लाइसेंस जारी किया जाता है। इसे समय-समय पर रिन्यू कराना पड़ता है। अगर लाइसेंसधारक की मृत्यु हो जाती है, तो उसके वारिसों को आसानी से लाइसेंस नहीं मिल पाता। उन्हें भी सभी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद लाइसेंस दिया जाता है। ये हथियार रखने का एक कानूनी (legal way to keep arms) तरीका बन गया है।

हथियार के उद्देश्य की पुष्टि होनी चाहिए

प्रदेश के बाहर हथियार लाइसेंस की सावधानीपूर्वक जांच करना जरूरी है। यह जानना जरूरी है कि किस जिला कलेक्टर ने हथियार जारी किया है और उनके बारे में पूछताछ करनी चाहिए। क्योंकि लोग नौकरी पाने या अन्य लाभ पाने के लिए हथियार लाइसेंस मांगते हैं। इसलिए क्या लाइसेंसधारक को वास्तव में आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने की जरूरत है? इसकी एक बार फिर से जांच होनी चाहिए। पहले ऐसी जांच मुश्किल थी। मगर अब तकनीक काफी आगे बढ़ गई है। इसलिए, यदि महाराष्ट्र में कोई आयुक्त किसी दूसरे राज्य के आयुक्त से संपर्क करके इस बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहे, तो यह बहुत कठिन नहीं है।

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बंदूक की नोक पर वसूली की धमकी (misuse of licensed weapon)

माफियाओं को अवैध तरीकों (misuse of licensed weapon) से आसानी से ग्रामीण और विदेशी पिस्तौलें मिल रही हैं। उद्यमियों, व्यापारियों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को बंदूक की नोक पर वसूली के लिए धमकाया जाता है। इस डर से ये लोग आत्मरक्षा के लिए हथियार लाइसेंस की मांग करते हैं। दूसरी ओर, माफिया, वसूली करने वाले, आतंकवादी, माओवादी चीन और पाकिस्तान की सीमा पार से अधिकांश हथियार प्राप्त करते देखे जाते हैं। यह भी सामने आया है कि पाकिस्तान ने ड्रोन की मदद से खुलेआम देश विरोधी ताकतों को हथियार मुहैया कराए हैं।

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इसे ध्यान में रखते हुए, यदि हम ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाना चाहते हैं, तो हमें अवैध हथियारों, उनके साधनों और स्थानों का पता लगाना चाहिए और सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। जैसे ही पता चले कि हथियार उपलब्ध कराने वाले अधिकारियों ने कोई गलत काम किया है, तो संबंधित जिला कलेक्टर या पुलिस आयुक्त के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए। ताकि अन्य लोग इससे सबक ले सकें। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, समय आ गया है कि सरकार समय के अनुरूप शस्त्र लाइसेंस नीति में उचित बदलाव करे, ऐसा ऐसी घटनाओं की पृष्ठभूमि में कहा जा सकता है।

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आधुनिक तकनीक का उपयोग जरूरी

  • शस्त्र लाइसेंस की जानकारी केवल कमिश्नर या जिला कलेक्टर को ही होती है। मगर अब इसमें महत्वपूर्ण बदलाव की जरूरत है।
  • यदि आप शस्त्र लाइसेंस देते हैं चाहे वह स्थानीय स्तर पर हो या पूरे देश के स्तर पर, गृह मंत्रालय और सभी जिलों के अधिकारियों को तुरंत सूचित किया जाना चाहिए।
  • इसके लिए भारत सरकार को एक पोर्टल बनाने की जरूरत है। जिस पर सभी शस्त्र धारकों की जानकारी, उनका आधार नंबर आदि आसानी से उपलब्ध हो सके।
  • इससे पारदर्शी तरीके से सभी को यह जानकारी उपलब्ध हो सकेगी कि किसके पास लाइसेंसी हथियार हैं। यदि राज्यवार, जिलावार जानकारी होगी, तो कई चीजें स्पष्ट हो सकती हैं।
  • उदाहरण के लिए यदि किसी के पास लाइसेंसी हथियार है और वह किसी और को देता है, तो इसकी तुरंत जांच की जा सकती है।

फिलहाल इस तरह के सत्यापन में समय लगता है। अभी यह जानना मुश्किल है कि हथियार उस धारक का है या नहीं और उसका लाइसेंस है या नहीं। फिर भी जानकारी में पारदर्शिता ज़रूरी है।

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