LOC के पास गोलीबारी से क्षति होने पर सरकार कैसे करती है मदद, मुआवज़े के नियम समझिए
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव सिर्फ दो देशों के बीच का कूटनीतिक या सैन्य मामला नहीं रह गया है। इसका सबसे गहरा और दर्दनाक असर उन नागरिकों पर पड़ता है जो नियंत्रण रेखा (LoC) के पास बसे गांवों में रहते हैं। लंबे समय से ये इलाके सीमा पार से फायरिंग और घुसपैठ का सामना करते आ रहे हैं मगर हाल के दिनों में एक हमलों ने इस संकट को एक नई और ज्यादा खतरनाक दिशा दे दी है।
जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिलों से लेकर पंजाब के गांवों तक न केवल जानमाल का नुकसान हो रहा है बल्कि लोगों के आशियाने भी खाक हो रहे हैं। जलते घर, टूटी हुई दीवारें, बिखरे हुए सामान और असहाय आंखें – ये दृश्य आज उन जगहों पर आम हो चले हैं, जहां कभी ज़िंदगी सामान्य रूप से बहा करती थी।
ड्रोन: नया खतरा और नई पीड़ा
पाकिस्तान द्वारा हाल ही में ड्रोन(Drone) के ज़रिए विस्फोटक और हथियार गिराए जाने की घटनाएं तेज़ी से बढ़ी हैं। इन ड्रोनों ने भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा बलों को चुनौती देने के साथ-साथ आम नागरिकों को भी निशाना बनाया है।
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जहां पहले केवल सीमा पर गोलीबारी होती थी अब ये छोटे मगर घातक उपकरण सीधे गांवों और रिहायशी इलाकों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। पंजाब के गुरदासपुर, पठानकोट और फिरोजपुर जिलों में दर्जनों घर, वाहन और खेतों को इन हमलों से नुकसान पहुंचा है। कई मीडिया रिपोर्ट्स से साफ देखा जा सकता है कि घरों की छतें उड़ गई हैं। वाहनों में आग लग चुकी है और परिवारों को रातोंरात पलायन करना पड़ा है।
क्या मिलता है मुआवज़ा और कितना
अब सवाल यह उठता है कि क्या भारत सरकार इन पीड़ित नागरिकों को मुआवज़ा (Compansation) देती है और अगर देती है तो उसकी प्रक्रिया, सीमा और व्यावहारिकता क्या है।
उत्तर है – हां, मुआवज़ा दिया जाता है मगर अक्सर यह नुकसान की तुलना में बहुत कम और प्रतीकात्मक होता है।
भारत की मुआवज़ा नीति और क्या कहती है क़ानून व्यवस्था
- भारत में आपदा राहत और संघर्ष प्रभावित इलाकों के लिए मुआवज़ा देने की नीति का नेतृत्व करती है-
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA)
- राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (SDMA)
- जिला प्रशासन एवं राजस्व विभाग
जम्मू-कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात जैसे सीमावर्ती राज्यों में, विशेष नीति बनाई गई है जिससे संघर्ष, फायरिंग या आतंकवाद से हुए नुकसान की भरपाई की जा सके।
मुआवज़ा पाने की पात्रता (Eligibility Criteria)
मुआवज़ा केवल उन्हीं को मिलता है जो कुछ विशेष शर्तें पूरी करना पड़ेगा। जैसे- पीड़ित व्यक्ति भारतीय नागरिक होना चाहिए। वास्तविक नुकसान भारत-पाकिस्तान संघर्ष या आतंकवाद के कारण हुआ हो। क्षतिग्रस्त घर या वाहन का स्वामित्व उसी व्यक्ति के नाम पर हो (स्वामित्व दस्तावेज जरूरी हैं। घटना की पुष्टि स्थानीय पुलिस या प्रशासन द्वारा की गई हो। नुकसान की जानकारी और प्रमाण जैसे कि तस्वीरें, FIR, समाचार रिपोर्ट आदि प्रस्तुत किए गए हों।
कैसे तय होता है मुआवज़ा
क्षति का मूल्यांकन जिला प्रशासन और संबंधित एजेंसियों द्वारा किया जाता है। इसके आधार पर मुआवज़ा तय होता है।
- घर के नुकसान पर मुआवज़ा
- आंशिक क्षति: पचास हजार रुपए और दो लाख रुपए तक
- पूर्ण रूप से नष्ट घर: 3 लाख रुपए और पांच लाख रुपए तक
- अस्थायी विस्थापन हेतु किराया: दस हजार रुपए और बीस हजार प्रति माह
वाहन के नुकसान पर मुआवज़ा कितना
- दोपहिया वाहन: दस हजार रुपए और तीस हजार रुपए
- कार/जीप: पचास हजार रुपए और 1.5 लाख रुपए
- ट्रक या व्यावसायिक वाहन: 1 लाख रुपए – 5 लाख रुपए (आजीविका पर निर्भरता के अनुसार)
मुआवज़ा पाने की प्रक्रिया दानें
पीड़ित व्यक्ति को स्थानीय पुलिस थाने में FIR दर्ज करानी होती है, जिसमें नुकसान का विवरण और कारण स्पष्ट किया जाता है। साक्ष्य प्रस्तुत करना, घर या वाहन की तस्वीरें, स्वामित्व प्रमाण, नुकसान का समय और तारीख, गवाहों के बयान आदि विवरण दिया जाता है।
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प्रशासन द्वारा सर्वेक्षण
तहसीलदार या अन्य राजस्व अधिकारी द्वारा ऑन-साइट मूल्यांकन किया जाता है। राज्य सरकार के डिज़ास्टर मैनेजमेंट पोर्टल या जिला कलेक्ट्रेट में मुआवज़ा फॉर्म जमा करना होता है। प्रक्रिया पूरी होने पर भुगतान किया जाता है, जो सीधे पीड़ित के बैंक खाते में ट्रांसफर होता है।
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क्या ये मुआवज़ा पर्याप्त है
अधिकांश नागरिकों को मिलने वाला मुआवज़ा वास्तविक नुकसान के मुकाबले बहुत कम होता है। एक पक्का घर, जिसकी कीमत 20 रुपए लाख हो, यदि पूरी तरह से नष्ट हो जाए तो दो लाख रुपए मुआवज़े से नया घर बनाना संभव नहीं है। ट्रकों या वाणिज्यिक वाहनों के नुकसान से कई परिवारों की पूरी आमदनी खत्म हो जाती है, मगर बीमा न होने की स्थिति में सरकारी सहायता ही एकमात्र सहारा होती है।
कहीं राजनीतिक फायदा, कहीं उपेक्षा
सीमावर्ती क्षेत्रों में चुनावी समय पर मुआवज़ा मुद्दा बन जाता है, मगर आम दिनों में प्रशासन की गति बेहद धीमी होती है। कई बार रिपोर्ट करने के बावजूद सर्वे में देरी होती है।
क्या किया जाना चाहिए
भारत को अपने सीमावर्ती नागरिकों के लिए एक स्वचालित, पारदर्शी और तेज़ मुआवज़ा तंत्र बनाना चाहिए। डिजिटल रजिस्ट्रेशन सिस्टम जिससे नागरिक खुद मोबाइल से आवेदन कर सकें।
भारत-पाक संघर्ष में हमारे जवानों की बहादुरी की कहानियाँ सुर्खियाँ बनती हैं और बननी भी चाहिए। मगर उन सैकड़ों परिवारों का क्या, जिनका कसूर सिर्फ इतना है कि उनका गांव सरहद के करीब है। वे न तो राजनीति में शामिल हैं, न ही जंग में। फिर भी उनके घर टूटते हैं, ज़िंदगी बिखरती है और भविष्य अनिश्चित होता है। हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्र सिर्फ ज़मीन नहीं, उसके नागरिकों से बनता है।
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