ताजमहल कैसे बना बिना सीमेंट के, जानिए 17वीं शताब्दी की जबरदस्त निर्माण कारीगरी के बारे में
प्रेम की अमर गाथा का प्रतीक ताजमहल न केवल अपनी बेजोड़ खूबसूरती के लिए विश्वभर में जाना जाता है बल्कि ये प्राचीन भारतीय शिल्प कौशल और वास्तुकला का भी एक जबरदस्त उदाहरण है। मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी प्रिय महिला मुमताज महल की याद में इस शानदार मकबरे का निर्माण करवाया था। सन् 1632 से 1648 तक लगभग सोलह सालों की अथक मेहनत के बाद ये कीमती संरचना पूरी हुई। मगर एक सवाल जो अक्सर उठता है वह यह है कि जब आधुनिक सीमेंट का आविष्कार नहीं हुआ था तो उस युग के कारीगरों ने किस तकनीक और सामग्री का इस्तेमाल करके इस विशाल और टिकाऊ इमारत को खड़ा किया।
आधुनिक निर्माण में सीमेंट एक सामग्री है। ये ईंटों और पत्थरों को आपस में जोड़ने का काम करती है और संरचना को मजबूती प्रदान करती है। मगर 17वीं शताब्दी में सीमेंट का अस्तित्व नहीं था। उस समय भारतीय कारीगरों ने स्थानीय रूप से उपलब्ध कुदरती चीजों के एक जबरदस्त मिश्रण का उपयोग किया जिसने ताजमहल को सदियों तक मजबूती से खड़ा रखा है।
बुझा हुआ चूने ने निभाई अहम भूमिका
ताजमहल बनाने में बुझे हुए चूने का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया गया था। चूने को पानी में भिगोकर और फिर उसे पीसकर एक महीन पेस्ट बनाया जाता था। ये पेस्ट धीरे-धीरे सूखता है और एक मजबूत तत्व बनाता है। इतिहासकारों और वास्तु विशेषज्ञों का मानना है कि ताजमहल की नींव और दीवारों को जोड़ने के लिए इस बुझे हुए चूने के पेस्ट का ही इस्तेमाल किया गया था। ये न केवल ईंटों और पत्थरों को आपस में जोड़ता था बल्कि नमी और अन्य पर्यावरणीय कारकों से भी बचाव करता था।
लाल रेत की ईंटें भी कारगार साबित हुईं
ताज को बनाने में लाल रेत की ईंटों का भी अहम योगदान है। ये ईंटें स्थानीय रूप से उपलब्ध रेत और मिट्टी से बनाई जाती थीं और इन्हें भट्टियों में पकाकर मजबूत किया जाता था। इन ईंटों का उपयोग मुख्य संरचना के निर्माण में किया गया था और ये बुझे हुए चूने के साथ मिलकर एक मजबूत आधार तैयार करती थीं।
कंकड़ चूना: बारीक काम और फिनिशिंग
कंकड़ चूना चूने का ही एक अन्य रूप है जिसका उपयोग संभवतः बारीक काम और फिनिशिंग के लिए किया गया था। इसे और भी महीन पीसकर एक चिकना पेस्ट बनाया जाता था जिसका उपयोग सतहों को समतल करने और उन्हें एक सुंदर रूप देने के लिए किया जाता था।
रेता का भी हुआ इस्तेमाल
मिट्टी और रेत भी इस पारंपरिक निर्माण मिश्रण के अहम घटक थे। मिट्टी में मौजूद चिकनाई चूने और अन्य सामग्रियों को आपस में बांधने में मदद करती थी जबकि रेत मिश्रण को एक निश्चित स्थिरता प्रदान करती थी। इन सभी सामग्रियों को एक निश्चित अनुपात में मिलाकर एक ऐसा लेप तैयार किया जाता था जो समय के साथ और भी मजबूत होता चला जाता था।
सफेद मकराना संगमरमर भी शामिल
ताजमहल की बाहरी सतह पर लगा सफेद मकराना संगमरमर राजस्थान के मकराना की खदानों से लाया गया था। यह उच्च गुणवत्ता वाला संगमरमर अपनी सफेदी और चमक के लिए जग प्रसिद्ध है। इस संगमरमर को तराशकर विभिन्न आकार की पट्टियों और सजावटी तत्वों में ढाला गया और फिर उन्हें बुझे हुए चूने के मिश्रण की मदद से मुख्य संरचना पर लगाया गया। ये संगमरमर न केवल ताजमहल को एक बढ़िया सौंदर्य प्रदान करता है बल्कि यह मौसम के प्रभावों को सहने की भी क्षमता रखता है।
ये वाकई एक जबरदस्त उपलब्धि है कि उस दौर के कारीगरों ने बिना आधुनिक उपकरणों और सामग्रियों के इतनी विशाल और सुंदर इमारत का निर्माण किया। ताजमहल आज भी हमें उस युग की हाईटेक निर्माण तकनीकों और शिल्प कौशल की याद दिलाता है। यह न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर है बल्कि यह प्राचीन भारतीय ज्ञान और कला का भी एक जीता जागता उदाहरण है।