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जानें फांसी की सजा सुनाने वाले जज को कितनी सैलरी मिलती है

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Judge salary in India: सोशल मीडिया एक बार फिर सवालों से गूंज रहा है। चर्चा का विषय एक जज की सैलरी कितनी होती है और उससे जुड़ा एक बड़ा सवाल क्या भारत में वकील (Advocate), जज से ज्यादा कमाते हैं?

ये एक ऐसा मुद्दा है जो हर उस व्यक्ति को जिज्ञासा में डाल देता है जिसने कभी अदालत की सीढ़ियां चढ़ी हों या अदालत से जुड़ी खबरें पढ़ी हों।

इन सवालों के जवाब आसान नहीं हैं, मगर डेटा और तथ्य (Data and Facts) हमारे पास है। भारत सरकार (Government of India) की डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस (Department of Justice) की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी से लेकर विशेषज्ञों की राय तक, इस रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे कि हाई कोर्ट(High Court) और सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) के जजों की सैलरी (Salary), पेंशन (Pension) और अन्य लाभ क्या हैं और इस बहस को भी समझेंगे कि क्या वकीलों की कमाई सच में जजों से ज्यादा होती है।

हाई कोर्ट के जज: सैलरी पेंशन और लाभ (Judge salary in India)

भारत के किसी भी उच्च न्यायालय (High Court) में कार्यरत एक जज की मासिक सैलरी (Monthly Salary) 2.25 लाख रुपये होती है। यानी औसतन प्रति दिन 7,500 रुपये।

यदि आप सोच रहे हैं कि यह रकम बड़ी है तो यह भी ध्यान रखें कि यह जज 24×7 की जिम्मेदारी में रहते हैं- न केवल अदालत में बल्कि न्यायिक अनुशासन के प्रतीक के रूप में भी।

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हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) की सैलरी इससे थोड़ी अधिक है- 2.50 लाख रुपए प्रति माह यानी लगभग 8,300 रुपए प्रति दिन।

रिटायरमेंट के बाद क्या

एक हाई कोर्ट (High Court) जज जब रिटायर होते हैं तो उन्हें सालाना 13.50 रुपए लाख की पेंशन मिलती है जो मासिक स्तर पर 1.12 रुपए लाख बैठती है। इसके अलावा उन्हें 20 लाख रुपये की ग्रेच्युटी दी जाती है।

जजों को कई प्रकार के अन्य भत्ते और सुविधाएं भी मिलती हैं

  • फर्निशिंग भत्ता: 6 लाख रुपये (सरकारी आवास के रख-रखाव हेतु)।
  • सामाजिक आयोजनों से जुड़े खर्चों के लिए भत्ता: 27000 रुपये।
  • निजी वाहन ड्राइवर और स्टाफ की सुविधा।
  • इन सबके बावजूद यह बहस इसलिए उठती है क्योंकि कुछ वरिष्ठ वकील इससे कहीं अधिक सालाना आय कमाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के जज: देश के सर्वोच्च न्यायाधीश की कमाई

भारत की सर्वोच्च न्यायिक संस्था-  सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) है और यहां कार्यरत जजों की सैलरी, हाई कोर्ट के जजों से स्वाभाविक रूप से अधिक होती है।

सुप्रीम कोर्ट के जज की मासिक सैलरी: 2.50 लाख रुपये प्रति माह।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की सैलरी: 2.80 लाख रुपये प्रति माह।

2018 से पहले यह सैलरी 90,000 रुपए से 1,00,000 रुपए के बीच होती थी मगर न्यायिक प्रणाली की बढ़ती जिम्मेदारियों और महंगाई को ध्यान में रखते हुए वेतन में संशोधन किया गया।

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रिटायरमेंट के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज क्या पाते हैं

भारत के मुख्य न्यायाधीश (Judge salary in india) को रिटायरमेंट के बाद अपनी आखिरी सैलरी का 50% पेंशन के रूप में मिलता है। यह नियम अन्य सुप्रीम कोर्ट के जजों पर भी लागू होता है।

इसके अलावा उन्हें भी कई प्रकार की सरकारी सुविधाएं- आवास गाड़ी सुरक्षा आदि- मिलती रहती हैं। खासकर यदि वे किसी संवैधानिक या वैधानिक आयोग में दोबारा नियुक्त हो जाते हैं।

क्या वकील जज से ज्यादा कमाते हैं

अब आते हैं उस बहुचर्चित और कुछ हद तक संवेदनशील सवाल पर- क्या वकील जज से ज्यादा कमाते हैं?

इसका उत्तर एक शब्द में हो सकता है- हाँ, मगर यह इतना सीधा भी नहीं है।

भारत में कई वरिष्ठ वकील विशेष रूप से सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक ही दिन में 2 लाख से 5 लाख तक की फीस चार्ज करते हैं।

नामी वकीलों की बात करें तो उनकी फीस इससे भी कई गुना अधिक हो सकती है। उदाहरण के तौर पर कुछ वकील प्रति पेशी 10 लाख से 15 लाख तक चार्ज करते हैं।

मगर क्या हर वकील इतना कमाता है

बिलकुल नहीं भारत में करीब 20 लाख वकील रजिस्टर्ड हैं जिनमें से केवल कुछ हजार ही सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में नियमित रूप से प्रैक्टिस करते हैं।

बाकी अधिकांश जिला अदालतों में कार्यरत हैं जहां केस की फीस कभी-कभी 500 रुपए से 5000 रुपए के बीच होती है।

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तो अगर औसत आय की बात करें तो एक सामान्य वकील की सालाना कमाई 2-6 लाख रुपए के बीच होती है जबकि वरिष्ठ वकीलों की कमाई करोड़ों में हो सकती है।

इस तरह देखें तो वकीलों की कमाई ‘highly skewed’ (बहुत असमान रूप से बंटी हुई) है।

वहीं जजों की सैलरी तय और स्थिर होती है जो हर महीने नियमित रूप से मिलती है- इसके साथ सामाजिक सम्मान (Social Respect) और सरकारी सुविधाएं अतिरिक्त बोनस (Bonous) के रूप में मिलती हैं।

कौन है ज्यादा कमाऊ, जज या वकील

ये तुलना केवल पैसों तक सीमित नहीं हो सकती। एक जज का पद केवल एक नौकरी नहीं बल्कि एक संवैधानिक ज़िम्मेदारी है।

उनके फैसले आवाम, देश और इतिहास पर गहरा असर डालते हैं।

वहीं वकीलों को अपनी बात रखने की आज़ादी होती है केस चुनने का विकल्प होता है और वे प्राइवेट प्रैक्टिस के ज़रिए अपनी आमदनी को असीमित बना सकते हैं।

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आपको बता दें कि यदि हम सुरक्षा स्थिरता और गरिमा को देख कर फैसला करें तो जजों का पद सर्वश्रेष्ठ है। मगर अगर कमाई की ऊंचाइयों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करें तो कई वकील(Advocate), जजों से कहीं आगे निकल जाते हैं।

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सवाल ये नहीं है कि कौन ज्यादा कमाता है। असली सवाल है कौन ज्यादा देता है। क्या वो वकील अपनी आवाज़ और तर्क से हर दिन न्याय का दरवाज़ा खटखटाता है या वो जज जो दिन के आखिर में ये फैसला करता है कि किसी की ज़िंदगी की दिशा क्या होगी।

दोनों की ज़िंदगियां आसान नहीं हैं। लेकिन शायद यही संघर्ष, यही असमंजस इस पेशे को इतना खास और पवित्र बनाता है।

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