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भीषण गर्मी से राहत: जानें क्या है कूल रूफ तकनीक, घर को बनाएं AC जैसा ठंडा

गर्मी की गर्मा गर्म लहरें इन दिनों देश के कई हिस्सों में आम जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर चुकी हैं। पारा 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है और हीटवेव का असर इतना तीव्र है कि दिन के वक्त बाहर निकलना रिस्की भरा बन गया है। ऐसे हालात में एक नई तकनीक कूल रूफ लोगों के लिए राहत की किरण बनकर उभरी है।

कूल रूफ तकनीक के बारे में जानें

कूल रूफ एक ऐसा उपाय है जिसके जरिए छत पर पड़ने वाली सीधी सूर्य की रोशनी को परावर्तित किया जाता है, ताकि गर्मी घर के अंदर प्रवेश न कर सके। पारंपरिक छतें सूरज की किरणों को सोख लेती हैं जिससे अंदर का तापमान बढ़ता है। तो वहीं कूल रूफ उस गर्मी को बाहर ही रोक देती है। इस तकनीक में ऐसे विशेष मटेरियल्स का इस्तेमाल किया जाता है जो अल्ट्रावॉयलेट किरणों (UV Rays) को रिफ्लेक्ट करते हैं।

ऐसे काम करती है ये तकनीक

इस प्रक्रिया में फाइबरग्लास की सतह पर एक विशेष सिरेमिक कोटिंग लगाई जाती है जो सूरज की गर्म किरणों को अवशोषित करने की बजाय उन्हें वापस परावर्तित कर देती है। इसका असर यह होता है कि छत पर गर्मी जमा नहीं होती और घर का आंतरिक तापमान काफी हद तक कंट्रोल रहता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, इस तकनीक से घर के अंदर का तापमान सामान्य से पांच सा सात डिग्री कम हो सकता है।

आम लोगों को मिल रहा है लाभ

तेलंगाना, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे प्रदेशों में कई सरकारी भवनों और रिहायशी क्षेत्रों में पहले ही कूल रूफ का सफलतापूर्वक इस्तेमाल हो चुका है। हैदराबाद नगर निगम ने अपने ‘कूल रूफ पॉलिसी 2023’ के तहत इस तकनीक को बढ़ावा दिया है। इसके परिणामस्वरूप कई परिवारों ने बिना एयर कंडीशनर के भी भयंकर गर्मी में राहत महसूस की है।

कमलेश शर्मा हैदराबाद के मलकपेट इलाके के निवासी हैं। उन्होंने बताया कि पिछले साल हम एयर कूलर के बिना एक घंटा नहीं बैठ सकते थे। मगर इस बार कूल रूफ लगवाने के बाद घर में शांति बनी हुई है। बिजली का बिल भी पहले से कम आया है।

खर्च कितना आता है

आपको बता दें कि आपकी छत 1000 वर्ग फीट की है और आप 30 रुपए वर्ग फीट वाली कोटिंग लगवाते हैं। तो कुल लागत लगभग तीस हजार रुपए हो सकती है।

क्या ये पर्यावरण के लिए सही

‘कूल रूफ’ तकनीक सिर्फ मनुष्यों के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी सही है। गर्मी से बचने के लिए बिजली से चलने वाले एयर कंडीशनर्स और कूलर्स का इस्तेमाल तेजी से बढ़ता है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी बढ़ता है। कूल रूफ इसके इस्तेमाल को कम कर ऊर्जा की खपत और कार्बन उत्सर्जन को घटाने में मदद करता है।

हालांकि कूल रूफ तकनीक का भविष्य उज्ज्वल नजर आता है, मगर इसके प्रसार में जागरूकता की कमी और प्रारंभिक लागत जैसी चुनौतियाँ भी हैं। कुछ स्थानों पर श्रमिकों को प्रशिक्षित करने और सही सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने की जरूरत है।

मगर विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकारें और आम जनता मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाएं तो ये युक्ति आने वाले वर्षों में शहरी गर्मी से निपटने का सबसे बढ़िया उपाय बन सकती है।

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