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जानें क्या है प्रशांत किशोर का BRDK फार्मूला, बिहार में बन सकता है सत्ता की चाभी

bihar politics: प्रशांत किशोर (PK) चुनावी रणनीति के धुरंधर जो कभी जातिवाद के खिलाफ खड़े होकर बिहार में “जनसुराज” की बात करते थे आज खुद जातीय गणित की बिसात पर अपनी चालें चल रहे हैं। वह नेता जो कहते थे जब दिल्ली में जात-पात की राजनीति को किनारा किया जा सकता है तो बिहार (bihar politics) में क्यों नहीं। अब उन्हीं जातीय समीकरणों को गहराई से साधने में जुटे हैं।

आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Assembly Elections 2025) की पृष्ठभूमि में प्रशांत किशोर का ‘BRDK’ फार्मूला – ब्राह्मण, राजपूत, दलित और कुर्मी – राजनीतिक विश्लेषकों और मतदाताओं दोनों के लिए उत्सुकता का विषय बना हुआ है। आइए समझते हैं कि ये फार्मूला क्या है, कैसे काम करता है और इसके जरिए पीके का मिशन कितना सफल हो सकता है।

B – ब्राह्मण: नेतृत्व की तलाश में

ब्राह्मण समुदाय (brahmin vote bihar) का बिहार की राजनीति में एक विशेष स्थान रहा है, मगर लंबे समय से यह समुदाय नेतृत्वविहीन महसूस करता रहा है। जनसुराज के अभियान के दौरान पीके ने इस समुदाय की नब्ज टटोलते हुए एक नए नेतृत्व की संभावना जताई। मगर, ब्राह्मण मतदाता पारंपरिक रूप से बीजेपी और कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं।

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बिहार में ब्राह्मण मतदाता लगभग 3.65% हैं। यह आंकड़ा भले ही छोटा लगे, मगर यदि किसी क्षेत्र विशेष में इनका प्रभाव हो और सही प्रत्याशी उतारा जाए, तो यह वोटबैंक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। पीके के लिए चुनौती यह है कि वह इस समुदाय को अपनी नीतियों और नेतृत्व क्षमता से कैसे जोड़ते हैं।

क्या पीके वह नायक बन सकते हैं जिसकी ब्राह्मण राजनीति को तलाश है

R – राजपूत: उदय सिंह का फ्रंटफुट पर आगमन

राजपूत समाज की बिहार में 3.45% हिस्सेदारी है, जो करीब 30-35 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है। पीके ने इस वर्ग के लिए एक नया चेहरा पेश किया है – पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह, जो अब जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

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राजपूत वोट पर पहले से ही बीजेपी और राजद की नजर रही है। उदय सिंह का व्यक्तिगत प्रभाव जरूर है, मगर जनसुराज के बैनर तले उन्हें कितना समर्थन मिलता है, यह चुनाव में साफ होगा। अगर उदय सिंह अपनी जाति के मतदाताओं को जोड़ने में सफल होते हैं, तो यह पीके के जातीय फार्मूले को बड़ी मजबूती देगा।

D – दलित: 17% आबादी का गणित

दलित समुदाय बिहार की राजनीति में एक निर्णायक शक्ति है, जिसकी 17% आबादी वोटों में तब्दील होने की क्षमता रखती है। इस वोटबैंक को साधने के लिए पीके ने मनोज भारती को जनसुराज का प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया।

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मगर यहां समीकरण इतने सरल नहीं हैं। चिराग पासवान, जीतन राम मांझी जैसे स्थापित नेताओं के बीच में प्रशांत किशोर को अपनी जगह बनानी है। दलित मतदाता परंपरागत रूप से पार्टी और नेता विशेष से जुड़े रहे हैं। क्या मनोज भारती इस समीकरण में सेंध लगा पाएंगे? यह भी एक बड़ी चुनौती है।

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K – कुर्मी: नीतीश के गढ़ में सेंध

कुर्मी वोट बैंक की राजनीति में सबसे जटिल पहलू यह है कि यह समाज अंदर से कई उप-वर्गों में बंटा हुआ है। प्रशांत किशोर ने आरसीपी सिंह को अपने साथ जोड़कर नीतीश कुमार के प्रभाव को चुनौती देने की कोशिश की है।

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आरसीपी सिंह पूर्व आईएएस अधिकारी और जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष का प्रशासनिक और संगठनात्मक अनुभव जनसुराज को दिशा देने में सहायक हो सकता है। मगर ध्यान देने योग्य बात यह है कि आरसीपी सिंह घमैला कुर्मी समुदाय से आते हैं, जबकि नीतीश कुमार अवधिया कुर्मी हैं, जिनकी संख्या ज्यादा है। इस जातीय उपवर्ग के फर्क को अगर पीके नजरअंदाज करते हैं, तो यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है।

जनसुराज: क्या यह जातीय समीकरणों से ऊपर उठेगा

प्रशांत किशोर का जनसुराज अभियान शुरू से ही एक वैकल्पिक राजनीति की बात करता रहा है – ऐसी राजनीति जो जात-पात से परे हो, जो विकास और नीति-निर्माण पर केंद्रित हो। मगर आज जब पीके खुद जातीय समीकरणों में उलझते नजर आते हैं, तो यह सवाल उठता है- क्या यह रणनीति चुनावी मजबूरी है या वैचारिक विचलन।

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BRDK फार्मूले के तहत उन्होंने चार जातियों पर फोकस किया है – मगर बिहार में राजनीति सिर्फ इन चार जातियों से नहीं बनती। यादव, मुस्लिम, बनिया, अति पिछड़ा और महिला वोट जैसे अनेक घटक हैं जिनकी अनदेखी खतरे से खाली नहीं।

चुनाव 2025: पीके के लिए अग्निपरीक्षा

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 प्रशांत किशोर के लिए सिर्फ एक चुनाव नहीं बल्कि राजनीतिक प्रामाणिकता की परीक्षा है। क्या वे अपने आदर्शों और चुनावी गणित के बीच संतुलन बना पाएंगे? क्या जातीय समीकरणों के सहारे वे वह ‘जनसुराज’ ला पाएंगे जिसकी उन्होंने कल्पना की थी।

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उनके साथ जुड़ रहे नेताओं – आरसीपी सिंह, उदय सिंह, मनोज भारती के लिए भी यह चुनाव एक ‘लिटमस टेस्ट’ की तरह है। अगर यह फार्मूला सफल हुआ, तो यह बिहार की राजनीति में एक नया अध्याय लिख सकता है। अगर असफल रहा, तो यह एक और प्रयोग मात्र बनकर रह जाएगा।

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आपको बता दें कि प्रशांत किशोर के ‘जनसुराज’ की राह अब आदर्शों की नहीं यथार्थ की राह हो गई है। उनके BRDK जातीय समीकरण की रणनीति चाहे जितनी चतुराई से बनाई गई हो, उसे जमीन पर उतारने के लिए जमीनी जुड़ाव, विश्वसनीय नेतृत्व और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। 2025 के नतीजे तय करेंगे क्या पीके जातीय बिसात पर चेकमेट करेंगे या खुद उसी चक्रव्यूह में फंस जाएंगे जिसे तोड़ने निकले थे।

 

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