क्या मायावती की विरासत संभाल पाएंगे, जानें आकाश आनंद के सामने क्या हैं असल सियासी संकट
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Election: उत्तर प्रदेश की सियासत (Politics of UP) में एक बार फिर हलचल मची है। बहुजन समाज पार्टी (BSP) के युवा चेहरा आकाश आनंद की पार्टी में धमाकेदार वापसी ने न केवल राजनीतिक गलियारों (political corridors) में चर्चा छेड़ दी है बल्कि सवाल भी खड़े किए हैं।
क्या आकाश आनंद इस बार मायावती की कसौटी पर खरे उतर पाएंगे। क्या वह उस बसपा को फिर से उसकी पुरानी पहचान दिला पाएंगे जो कभी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज थी। आइए इस सियासी कहानी को करीब से समझते हैं।
आकाश आनंद के सियासी सफर पर एक नजर
Akash Anand का नाम पहली बार 2017 में तब सुर्खियों में आया जब बसा अध्यक्ष ने उन्हें सहारनपुर की एक रैली में जनता के सामने पेश किया। लंदन से एमबीए की डिग्री हासिल कर चुके आकाश मायावती के छोटे भाई आनंद कुमार के बेटे हैं।
युवा ऊर्जावान और आधुनिक सोच के साथ उनकी एंट्री ने BSP कार्यकर्ताओं में नई उम्मीद जगाई थी। 2019 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय समन्वयक बनाया गया और ऐसा लगा कि मायावती धीरे-धीरे अपनी विरासत आकाश को सौंपने की तैयारी कर रही हैं।
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मगर ये सफर इतना आसान नहीं रहा। आकाश की सियासी पारी शुरू होने से पहले ही हिचकोले खाने लगी। 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) में उनके फायरब्रांड भाषणों ने सुर्खियां तो बटोरीं मगर सीतापुर में दिए एक विवादास्पद भाषण ने उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवा दी।
मायावती ने इसे अपरिपक्वता करार देते हुए उन्हें राष्ट्रीय समन्वयक पद (National Coordinator post) से हटा दिया। यह फैसला उस समय आया जब लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) अपने चरम पर थे। मायावती का यह कदम न केवल आकाश के लिए बल्कि पार्टी के लिए भी चौंकाने वाला था।
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2024 का लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) बसपा के लिए एक और झटका साबित हुआ। पार्टी एक बार फिर शून्य पर सिमट गई जैसा कि 2014 में हुआ था। इस हार ने मायावती के सामने कई सवाल खड़े किए।
क्या आकाश को हटाना सही फैसला था। या फिर मायावती ने उन्हें समय से पहले बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी थी। इन सवालों के बीच आकाश की वापसी और उनकी ताजा नियुक्ति ने एक नया मोड़ ला दिया है।
मायावती का सियासी संघर्ष, गौरव से गुमनामी तक
मायावती जिन्होंने कांशीराम के साथ मिलकर बसपा को उत्तर प्रदेश की सियासत में एक ताकतवर ताकत बनाया आज खुद को मुश्किल दौर में पा रही हैं। 2007 में बसपा ने 403 में से 206 सीटें जीतकर अकेले दम पर सरकार बनाई थी। उस समय मायावती की आक्रामकता और रणनीति ने दलित वोट बैंक (Vote Bank) को एकजुट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मगर पिछले एक दशक में बसपा का ग्राफ लगातार गिरता गया है।
- 2014 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections): शून्य सीटें
- 2017 यूपी विधानसभा चुनाव: 19 सीटें
- 2019 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections): 10 सीटें (सपा के साथ गठबंधन में)
- 2022 यूपी विधानसभा चुनाव: मात्र 1 सीट
- 2024 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections): फिर से शून्य
बसपा का सबसे बड़ा गढ़ उत्तर प्रदेश अब टूट चुका है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने गैर-जाटव दलित वोटों में सेंधमारी की तो समाजवादी पार्टी (SP) ने मायावती के कई करीबी नेताओं को तोड़कर दलित वोट बैंक पर निशाना साधा।
आजाद समाज पार्टी (ASP) के चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा नेता भी दलित समाज में अपनी पैठ बना रहे हैं जो BSP के लिए नई चुनौती बनकर उभरे हैं।
मायावती की सक्रिय राजनीति से दूरी भी बसपा की कमजोरी का एक कारण रही है। वह अब न तो किसी सदन की सदस्य हैं और न ही उनकी पार्टी के पास इतनी ताकत है कि वह उन्हें सीधे उच्च सदन में भेज सके। ऐसे में आकाश आनंद की वापसी को बसपा के लिए एक नई उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है।
आकाश की वापसी, नई ऊर्जा या नया रिस्क
2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) के बाद आकाश आनंद की वापसी ने बसपा कार्यकर्ताओं में उत्साह भरा। उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया गया मगर इस चुनाव में भी बसपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा।
इसके बाद फरवरी 2025 में मायावती ने एक और कड़ा फैसला लिया। उन्होंने आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से बाहर कर दिया और आकाश को गुटबाजी का आरोप लगाते हुए सभी पदों से हटा दिया। 3 मार्च 2025 को आकाश को पार्टी से निष्कासित तक कर दिया गया।
मगर यह कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। आकाश ने सोशल मीडिया पर माफी मांगते हुए मायावती को अपना “गुरु” बताया और अपनी गलतियों को स्वीकार किया।
डॉ. आंबेडकर जयंती के मौके पर मायावती ने उन्हें माफ करते हुए पार्टी में वापस लिया। 18 मई 2025 को दिल्ली में हुई एक अहम बैठक में मायावती ने आकाश को चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर( National Coordinator) नियुक्त किया। इसके साथ ही संकेत दिए कि जल्द ही उन्हें देशभर में पार्टी के अभियानों की जिम्मेदारी दी जाएगी।
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आकाश आनंद की इस तीसरी वापसी ने सियासी गलियारों में कई सवाल खड़े किए हैं। कुछ विश्लेषक इसे मायावती की रणनीति का हिस्सा मानते हैं जो युवा नेतृत्व को उभारकर पार्टी की खोई जमीन वापस पाना चाहती हैं। वहीं कुछ आलोचक इसे परिवारवाद (Nepotism) की वापसी का संकेत बताते हैं।
क्या हैं आकाश आनंद के सामने चुनौतियां
BSP के नए नेशनल कॉर्डिनेटर आकाश आनंद के सामने दोहरी चुनौती है। पहली मायावती की कसौटी पर खरा उतरना और दूसरी बसपा को उसका पुराना रुतबा दिलाना।
मायावती ने साफ कर दिया है कि उनके जीते-जी पार्टी की कमान किसी को नहीं सौंपी जाएगी। ऐसे में आकाश को मायावती के विश्वास में रहकर अपनी सियासी पारी खेलनी होगी। उनकी कुछ प्रमुख चुनौतियां इस प्रकार हैं-
युवा कार्यकर्ताओं की कमी:
बसपा में पुराने नेता अब गिनती के बचे हैं और नई पीढ़ी के कार्यकर्ताओं की भारी कमी है। हालांकि बहुजन वॉलंटियर फोर्स के जरिए पार्टी इस कमी को पूरा करने की कोशिश कर रही है मगर यह आसान नहीं होगा।
डिजिटल युग में प्रासंगिकता (Relevancy of Digital Era):
आज की राजनीति हाई-टेक हो चुकी है। मायावती खुद ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए जनता से जुड़ती हैं। आकाश को न केवल सोशल मीडिया पर सक्रिय रहना होगा बल्कि युवा वोटरों को आकर्षित करने के लिए नई रणनीतियां भी बनानी होंगी।
वोट बैंक का बिखराव:
BSP का दलित वोट बैंक अब बिखर चुका है। भाजपा (BJP), समाजवादी पार्टी ( SP) और आजाद समाज पार्टी (ASP) जैसे दल इस वोट बैंक में सेंधमारी कर रहे हैं। आकाश को इसे फिर से एकजुट करना होगा।
मायावती की छाया:
मायावती की सख्त कार्यशैली और फैसले आकाश के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। उन्हें मायावती के मार्गदर्शन में रहते हुए अपनी अलग पहचान बनानी होगी।
क्या आकाश दिला पाएंगे बसपा को पुराना गौरव
आकाश आनंद के पास ऊर्जा शिक्षा और आधुनिक सोच है मगर सियासत का मैदान इतना आसान नहीं। मायावती ने जिस तरह कांशीराम के साथ मिलकर बसपा को सत्ता तक पहुंचाया वह एक लंबे संघर्ष की कहानी थी।
आकाश को भी ऐसा ही संघर्ष करना होगा। उनकी ताकत यह है कि वह युवा हैं और डिजिटल युग की राजनीति को समझते हैं। बसपा को सोशल मीडिया पर सक्रिय करने में उनकी भूमिका पहले भी देखी जा चुकी है।
हालांकि, मायावती की सख्त शर्तें और पार्टी में परिवारवाद की आलोचना उनके लिए जोखिम पैदा कर सकती हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि अगर आकाश को “खुलकर खेलने” का मौका मिले तो वह बसपा में नई जान फूंक सकते हैं। मगर इसके लिए उन्हें मायावती का भरोसा जीतना होगा।
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