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ना कोई चढ़ पाया, ना कोई समझ पाया; जानें कहां है पवित्र मणिमहेश की रहस्यमयी चोटी

हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में स्थित मणिमहेश कैलाश न सिर्फ एक भव्य पर्वत श्रृंखला है बल्कि ये करोड़ों लोगों की आस्था का मरकज भी है। हर साल भाद्रपद माह में यहां हजारों शिवभक्त मुश्किल चढ़ाई के साथ इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं। इसे पंच कैलाश में से एक माना गया है।

शिव की धरती पर एक अनछुई चोटी

मणिमहेश कैलाश पर्वत की ऊंचाई लमसम 5,486 मीटर है और इसके तल में स्थित है मणिमहेश झील, जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई लगभग चार हजार मीटर है। मानसरोवर की तरह ये झील भी पवित्र मानी जाती है, जहाँ भक्त स्नान करके परिक्रमा करते हैं। लोक मान्यता के मुताबिक, भोलेनाथ ने माता पार्वती से विवाह से पहले इसी पर्वत बनाया था।

हैरानी की बात ये है कि आज तक कोई भी इस पर्वत की चोटी तक नहीं पहुंच पाया है। बीसवीं सदी में भारत-जापान का एक दल पर्वतारोहण पर गया था, मगर उन्हें नाकामी ही हाथ लगी। आस पड़ोस के लोग मानते हैं कि शिव की इच्छा के बिना इस पर्वत पर चढ़ना नामुमकिन है।

स्थानीय गद्दी समुदाय की एक लोककथा के मुताबिक, एक चरवाहा अपनी भेड़ों के साथ इस पहाड़ पर चढ़ने निकला था। कहा जाता है कि वह कभी वापस नहीं लौटा और वह तथा उसकी भेड़ें पत्थर बन गए। आज भी पर्वत की तलहटी पर कुछ पत्थर की आकृतियाँ देखी जाती हैं, जिन्हें इसी घटना से मिलाकर देखा जाता है।

धार्मिक यात्रा और पवित्र स्थल

2025 में मणिमहेश यात्रा 26 अगस्त से शुरू होगी। यात्रा की शुरुआत भरमौर से होती है और भक्तों को कीरबन 13 किलोमीटर की मुश्किल चढ़ाई करनी पड़ती है। झील के पास संगमरमर की भगवान शिव की मूर्ति है, जिसकी भक्त पूजा करते हैं। यात्रा के मार्ग में पड़ने वाले गौरी कुंड और शिव क्रोत्री दो खास धार्मिक स्थल हैं जहां महिलाएं और पुरुष स्नान करते हैं।

मणिमहेश का रहस्य: विज्ञान बनाम आस्था

‘मणिमहेश’ नाम में ही रहस्य छिपा है मणि यानी रत्न। माना जाता है कि पूर्णिमा की रात पहाड़ की चोटी से एक रहस्यमयी रोशनी निकलती है, जो झील में प्रतिबिंबित होती है। भक्तों के लिए ये भोलेनाथ की मणि का चमत्कार है। तो वहीं वैज्ञानिक इसे ग्लेशियरों से परावर्तित होती चाँदनी बताते हैं।

आपको बता दें कि मणिमहेश सिर्फ एक तीर्थ नहीं, आस्था, पर्यावरण, लोककथाओं और वैज्ञानिक नजरिए का अद्भुत संगम है। ये स्थान ये भी याद दिलाता है कि कुदरत के रहस्यों को कभी पूरी तरह जाना नहीं जा सकता और शायद यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।

 

 

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