अर्थव्यवस्था को धार देगी रेपो दरों में कमी
प्रेम शर्मा
वैश्विक स्तर पर चल रही आर्थिक उथल पुथल के बीच पिछले कुछ समय से देश में अर्थव्यवस्था के लिहाज से सकारात्मक खबरें और अब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से नीतिगत दरों में कमी से यही संकेत उभरता है कि महंगाई कुछ नियंत्रण में है। ऐसे में आर्थिक मोर्चे पर खड़ी चुनौतियों से निपटने में काफी हद तक देश आगे बढ़ा है। RBI ने एक बार फिर 6 जून को प्रमुख नीतिगत दर यानी Repo Rate में 0.5 फीसद की कमी करके उसे 5.5 फीसद कर दिया। जो उम्मीद से ज्यादा है। इसके अलावा एक चौंकाने वाले फैसले के तहत RBI ने बैंकों के लिए भी नकद आरक्षित अनुपात यानी CRR में भी एक फीसद की कटौती की घोषणा लगातार तीसरी बार की है। इससे पहले आरबीआइ ने इसी वर्ष फरवरी और अप्रैल में पच्चीस आधार अंकों की कटौती की थी।
जाहिर है, यह न केवल देश के भीतर आर्थिक उतार-चढ़ाव से निपटने की कोशिश है, बल्कि दुनिया भर में जो चुनौतियां खड़ी हो रही हैं, उसमें निपटने और अर्थव्यवस्था को संभालने में भी मदद मिलेगी। यही नही RBI की घोषणा के चंद घन्टों बाद ही बैंकिंग सेक्टर में लोन और फिक्स्ड डिपॉजिट के ब्याज दरों में कमी होने वाली है। देश के दो बड़े बैंकों ने लोन के इंटरेस्ट रेट में बदलाव किया है। पब्लिक सेक्टर के पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने रेपो लेंडिंग रेट (RLR) में 50 बीपीएस की कटौती की है। नई दरें 9 जून से प्रभावी होंगी।
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वहीं देश के सबसे बड़े प्राइवेट सेक्टर बैंक HDFC बैंक ने एमसीएलआर दरों में 10 बीपीएस यानि 0.10 फीसदी की कमी है। दरों में कटौती का असर ईएमआई पर पड़ेगा। उधारकर्ताओं को राहत मिलेगी। होम लोन, कार लोन, पर्सनल लोन और ऋण पर नए रेट प्रभावी होंगे।
भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के ग्रुप चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर सौम्य कांति घोष और पिरामल एंटरप्राइजेज के चीफ इकोनॉमिस्ट देबोपम चौधरी ने एक ऐसी भविष्यवाणी की थी, जिसकी शायद ही किसी और ने अनुमान लगाया हो। उन्होंने जून में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति की बैठक में ब्याज दरों में बड़ी कटौती का अनुमान लगाया था और हुआ भी ऐसा ही। रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में 50 बीपीएस की कटौती की दी। अब इन दोनों अर्थशास्त्रियों ने फिर से भविष्यवाणी की है। इन दोनों का मानना है कि रिजर्व बैंक फिर से ब्याज दरों में कटौती करेगा।
आम बोलचाल के रूप में रेपो दरों में कमी को मुख्य रूप से ऋण के लिहाज से सुविधाजनक माना जाता रहा है। कर्ज सस्ता या महंगा होने का हिसाब इसी पर टिका होता है और इसका सीधा और पहला असर उन उपभोक्ताओं पर पड़ता है, जिन्होंने घर, वाहन, अन्य सामान या फिर शिक्षा जैसी जरूरतों के लिए बैंकों से ऋण लिया होता है या फिर वे लोग, जो इस बात का इंतजार करते हैं कि रिजर्व बैंक की ओर से कब नीतिगत दरों में कमी की जाए और कर्ज सस्ता होने के बाद वे कुछ खरीदने या निवेश करने की योजना बनाएं। वैसे तो रिजर्व बैंक की नीतिगत दरों के अनुरूप ही व्यावसायिक बैंक उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले ऋण और अन्य सावधि जमा के मद में ब्याज की दरें निर्धारित करते हैं।
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रेपों दरों के घटने बाद यह अनुमान लगाया जा रहा है कि पिछले कुछ समय से वाहन बाजार और खासतौर पर जमीन-जायदाद के कारोबार में जिस तरह की मंदी की आशंका जताई जा रही थी, नीतिगत दरों में कटौती के बाद उसमें सुधार होगा। इस लिहाज से देखें तो रिजर्व बैंक की ओर से नीतिगत दरों में बड़ी कमी की जो घोषणा की है, वह एक तरह से अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने की दिशा में एक अहम कदम है। लेकिन इस तरह के फैसले सिर्फ घोषणाओं और अर्थव्यवस्था के जटिल गणित तक ही न सिमटे रहें। इसका असर जब तक जमीन पर नहीं दिखेगा, आम लोगों को इसका सीधा फायदा नहीं मिलेगा, वे अपनी जरूरत के लिए घर या कोई अन्य चीज की खरीदारी को लेकर सहज और निर्द्वद्व नहीं होंगे, तब तक इस तरह के फैसले अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को दूर करने में सहायक साबित नहीं हो सकते।
महंगाई से राहत और क्रय शक्ति की सीमा में खरीदारी में सहजता से यह तय होगा कि रेपो दरों में कमी का लाभ आम लोगों तक कितना पहुंच पाता है। ऋण लेने का उत्साह उसे चुकाने की स्थितियों पर टिका रह सकता है। इसलिए रोजगार और आय के अन्य माध्यमों की बुनियाद मजबूत करने की स्थिति पैदा करनी होगी, ताकि लोग अपने निवेश और अन्य आर्थिक फैसलों को लेकर सुरक्षित महसूस करें।
भारतीय रिजर्व बैंक ने आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए रेपो दरों में 0.5 फीसदी की कटौती की है, जो विशेषज्ञों के अनुमान से अधिक है। साथ ही, कैश रिजर्व रेशियों में एक फीसदी की कमी की गई है, जिससे बैंकों के पास कर्ज देने के लिए अधिक धन उपलब्ध होगा। हालॉकि यह भी कहा जा रहा है कि यूक्रेन-रूस युद्ध और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ संबंधी अनिश्चितताओं के कारण ग्रोथ की राह चुनौतीपूर्ण हो गई है।