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UP Politics में उठते सुर और डगमगाते भरोसे, सपा-कांग्रेस के गठबंधन पर फिर मंडराए सवाल

उत्तर प्रदेश की राजनीति (UP Politics) एक बार फिर उस मोड़ पर खड़ी है जहां गठबंधन की नींव दरकती नजर आ रही है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों भारत जोड़ो के साझा झंडे के नीचे खड़ी हैं मगर भीतर ही भीतर फूट की दरारें गहराती जा रही हैं। जून की तपती गर्मी में जैसे सियासत की आंच और तेज हो गई जब कांग्रेस सांसद इमरान मसूद (Imran Masood) ने सरेआम कह दिया कि “2027 में ‘80-17’ का फॉर्मूला नहीं चलेगा”। उनकी इस बेबाकी ने यूपी की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया।

ये बयान उस सीट बंटवारे की ओर इशारा करता है जिसमें 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से महज़ 17 पर चुनाव लड़ा जबकि बाकी सपा के हिस्से आईं। यह समझौता उस समय दोनों दलों के बीच राजनीतिक एकता का प्रतीक था मगर अब यही समझौता दरकते भरोसे की मिसाल बन गया है।

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इस सिलसिले में सपा नेता धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) जो अखिलेश यादव के चचेरे भाई और लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक हैं उन्होंने Indian Express को दिए इंटरव्यू में गठबंधन की पेचीदगियों और सपा की आगामी रणनीतियों पर विस्तार से बात की। उनके शब्दों में भावनाओं की गहराई और सियासी दूरदर्शिता दोनों झलकते हैं।

जातिगत जनगणना हमारे संघर्ष की जीत है

जब जातिगत जनगणना की घोषणा की गई तो धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) ने उसे समाजवादी पार्टी की वैचारिक जीत बताया। उन्होंने कहा “यह अकेले आंकड़ों की बात नहीं है। यह सामाजिक न्याय की बुनियाद है। यह उस संघर्ष की परछाईं है जो नेताजी (मुलायम सिंह यादव) के जमाने से चल रही थी।” सपा मानती है कि यह निर्णय दशकों से उपेक्षित वर्गों को मुख्यधारा में लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

2027 की तैयारी: “पीडीए हमारा भविष्य है”

धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) का दावा है कि सपा का आधार लगातार मज़बूत हो रहा है। उन्होंने कहा “यूपी की जनता अब इस सरकार की सच्चाई जान चुकी है। बेरोजगारी महंगाई और अपराध चरम पर हैं। ऐसे में पिछड़े दलित और अल्पसंख्यक वर्गों यानी पीडीए की उम्मीदें अखिलेश यादव से जुड़ चुकी हैं।”

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वो मानते हैं कि 2022 के चुनाव में गठबंधन से जुड़ने वाले छोटे दलों का बिखराव कोई बड़ी बात नहीं है। “जो दल हमारी जीत के बाद ही साथ होते हैं वे हार में साथ नहीं दे सकते। मगर जनता अगर साथ है तो किसी राजनीतिक दल की जरूरत नहीं रह जाती” उन्होंने सधी हुई मुस्कान के साथ जोड़ा।

दिल्ली में AAP को समर्थन और यूपी में कांग्रेस

धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) ने AAP को दिल्ली में समर्थन दिए जाने के पीछे का तर्क स्पष्ट किया: “इंडिया गठबंधन का मूल उस राज्य की सबसे मजबूत पार्टी के साथ खड़ा होना है। दिल्ली में AAP का वर्चस्व है और वहां उन्हें समर्थन देना स्वाभाविक था। मगर यूपी में कांग्रेस के साथ हमारा गठबंधन बना रहेगा।”

इमरान मसूद (Imran Masood) के बयान पर दो टूक

इमरान मसूद (Imran Masood) के तीखे बयान पर जब उनसे प्रतिक्रिया मांगी गई तो धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) ने संयमित मगर दृढ़ लहजे में कहा “मुझे नहीं पता कि कांग्रेस ने मसूद को गठबंधन नीति तय करने की शक्ति कब दी। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व खड़गे साहब, सोनिया जी और राहुल गांधी ही इस पर अंतिम निर्णय लेंगे।”

उनके शब्दों में एक परिपक्व राजनीतिक सोच दिखाई दी जो गठबंधन को टूटने नहीं बल्कि संभलकर आगे बढ़ाने में विश्वास रखती है।

राज्य की राजनीति (UP Politics) जहां एक ओर गठबंधन की मजबूरी है वहीं दूसरी ओर आत्मसम्मान और क्षेत्रीय वर्चस्व की जद्दोजहद भी जारी है। कांग्रेस और सपा दोनों जनता के विश्वास को जीतने के लिए साथ आना तो चाहते हैं मगर नेतृत्व और भागीदारी की गुत्थियां सुलझाना आसान नहीं। आने वाला समय बताएगा कि ‘भारत’ का यह गठबंधन दिल से बना है या चुनावी रणनीति से।

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