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छोटे दल, बड़ी बात; बिहार में इंडिया गठबंधन का बिगड़ सकता है खेल

बिहार विधानसभा इलेक्शनों की आहट के साथ ही राज्य की सियासत में हलचल तेज हो गई है। इस बार चर्चा में है महागठबंधन की एकजुटता पर मंडराते संकट के बादल। झारखंड की प्रमुख राजनीतिक पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने बिहार में अपनी चुनावी मौजूदगी दर्ज कराने का ऐलान कर दिया है। झामुमो की इस राजनीतिक महत्वाकांक्षा ने महागठबंधन की एकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या झामुमो को गठबंधन में उचित जगह मिलेगी? या फिर पार्टी को अकेले मैदान में उतरना पड़ेगा। इस सवाल के जवाब में ही छिपा है बिहार की आगामी राजनीति का भविष्य।

झामुमो की दावेदारी और एक नए समीकरण की शुरुआत

झारखंड में सत्तारूढ़ दल झामुमो ने अब बिहार की राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाने का इरादा कर लिया है। पार्टी ने स्पष्ट किया है कि वह हर हाल में चुनाव लड़ेगी चाहे गठबंधन के साथ या फिर स्वतंत्र रूप से। झामुमो के प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा हमने बिहार इकाई से प्रस्ताव मंगवाया है और कुल 16 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी की है। इनमें से कम से कम 12 सीटों पर पार्टी पूरी मजबूती से उतरने की बात कह रही है।

महागठबंधन से उम्मीदें अभी बाकी हैं

भले ही झामुमो ने स्वतंत्र रूप से लड़ने का संकेत दिया हो मगर पार्टी की प्राथमिकता अब भी महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की है। यह रणनीति समझदारी भरी भी लगती है क्योंकि गठबंधन में रहकर चुनाव लड़ना संसाधनों प्रचार और वोटरों तक पहुंच के लिहाज से ज्यादा लाभदायक होता है। मगर सवाल यह है कि क्या राजद और कांग्रेस झामुमो को इतनी सीटें देने को तैयार हैं?

राजद का रुख कैसा, समर्थन या संकोच

राजद नेता और झारखंड सरकार में श्रम मंत्री संजय यादव ने झामुमो की मांग को जायज बताया है। उन्होंने कहा “हर पार्टी का हक है कि वो अपना विस्तार करे। जब झारखंड में चुनाव हुए थे तब राजद ने भी सीटों की मांग की थी।” संजय यादव के इस बयान से लगता है कि राजद झामुमो की मांग को सिरे से खारिज नहीं कर रहा मगर अंतिम फैसला शीर्ष नेतृत्व के हाथ में है। यही नेतृत्व यह तय करेगा कि गठबंधन का भविष्य किस दिशा में जाएगा।

इन सीटों पर झामुमो की नजर

झामुमो ने जिन 16 सीटों पर दावा जताया है वे सभी सीमावर्ती और झारखंड से सटे इलाके हैं जहां पार्टी का प्रभाव पहले से ही देखा गया है। ये सीटें हैं-

  • कटोरिया
  • चकाई
  • ठाकुरगंज
  • कोचाधामन
  • रानीगंज
  • बनमनखी
  • धमदाहा
  • रुपौली
  • प्राणपुर
  • छातापुर
  • सोनवर्षा
  • झाझा
  • रामनगर
  • जमालपुर
  • तारापुर
  • मनिहारी

इन क्षेत्रों में झामुमो को आदिवासी वोटों और स्थानीय समर्थन का भरोसा है।

गठबंधन से बाहर की राह खतरा या मौका

झामुमो ने ये भी स्पष्ट कर दिया है कि अगर उसे गठबंधन में उपेक्षा झेलनी पड़ी तो वह स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी। अभी तक उसे गठबंधन की बैठकों में शामिल होने का निमंत्रण भी नहीं मिला है जो स्थिति को और संवेदनशील बना रहा है। अगर ऐसा होता है तो यह महागठबंधन के लिए बड़ा झटका हो सकता है खासकर उन इलाकों में जहां झामुमो के पास मजबूत आधार है।

झामुमो की एंट्री से राजनीतिक समीकरणों में हलचल

बिहार की सियासत में झामुमो की एंट्री से समीकरण तेजी से बदल सकते हैं। सीमावर्ती जिलों में झामुमो न सिर्फ वोट कटवा साबित हो सकता है बल्कि कुछ सीटों पर निर्णायक भूमिका भी निभा सकता है। इसका सीधा असर महागठबंधन के सीट शेयरिंग पर पड़ेगा। अगर झामुमो अकेले लड़ता है तो विपक्षी वोटों का बंटवारा तय है जिससे एनडीए को अप्रत्याशित फायदा मिल सकता है।

क्या झामुमो को मिल पाएगा वाजिब स्थान

यह सवाल अब राजनीतिक विश्लेषकों के लिए भी चर्चा का विषय बन गया है। झामुमो के पास संगठनात्मक ढांचा जनाधार और सीमावर्ती क्षेत्रों में पकड़ है। ऐसे में उसे नजरअंदाज करना महागठबंधन के लिए नुकसानदेह हो सकता है। यदि गठबंधन को एनडीए से कड़ी टक्कर लेनी है तो हर सहयोगी को उसकी हैसियत के अनुसार स्थान देना जरूरी होगा।

राजनीति में आत्मनिर्भरता की ओर झामुमो

झामुमो का यह रुख बताता है कि पार्टी अब अपनी राजनीतिक पहचान और भविष्य को लेकर गंभीर है। बिहार में चुनाव लड़ना सिर्फ एक प्रयोग नहीं बल्कि पार्टी की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। यह आत्मनिर्भरता की दिशा में एक कदम है जो भविष्य में झामुमो को एक राष्ट्रीय दल की दिशा में भी ले जा सकता है।

आगामी बिहार विधानसभा इलेक्शन से पहले झामुमो की दावेदारी ने न सिर्फ महागठबंधन के भीतर मतभेदों को उजागर किया है बल्कि यह संकेत भी दिया है कि आने वाले समय में गठबंधन की राजनीति कितनी जटिल हो सकती है। अगर झामुमो को समय रहते उचित स्थान नहीं मिला तो वह अकेले चुनाव लड़कर न सिर्फ गठबंधन को नुकसान पहुंचा सकता है बल्कि बिहार की चुनावी फिजा को भी पूरी तरह बदल सकता है।

शुरू हो चुकी हैं तैयारियां

झारखंड मुक्ति मोर्चा सिर्फ बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है। बिहार में चुनाव लड़ने का मन बना लेने के बाद पार्टी ने संगठनात्मक स्तर पर भी तैयारी शुरू कर दी है। पार्टी कार्यकर्ताओं को सीमावर्ती जिलों में सक्रिय किया जा रहा है और बूथ स्तर पर पकड़ मजबूत करने की कोशिशें तेज़ हो चुकी हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि झामुमो इस बार सिर्फ “पॉलिटिकल पब्लिसिटी” के लिए नहीं बल्कि जीत की मंशा से मैदान में उतरना चाहती है।

महागठबंधन की राजनीति कोई नई बात नहीं है मगर इसमें सामंजस्य बनाए रखना हमेशा कठिन रहा है। इससे पहले भी हम बिहार में कई बार सीटों के बंटवारे को लेकर छोटे दलों की नाराज़गी देख चुके हैं। चाहे वो विकासशील इंसान पार्टी (VIP) हो या हम (Hindustani Awam Morcha) छोटे दलों को बड़े दलों से बराबरी की अपेक्षा रही है। झामुमो की नाराज़गी भी इसी परिपाटी की एक कड़ी है।

आपको बता दें कि झामुमो केवल बिहार में नहीं बल्कि पूरे देश में INDIA गठबंधन का हिस्सा है। ऐसे में इस बात की गंभीरता और बढ़ जाती है कि राष्ट्रीय स्तर पर एकता की जो तस्वीर पेश करने की कोशिश की जा रही है, उसे राज्य स्तर पर कैसे लागू किया जाता है। यदि बिहार जैसे अहम प्रदेश में झामुमो जैसे सहयोगी को इग्नोर किया गया तो इससे गठबंधन की साख पर असर पड़ सकता है।