UP में किंगमेकर नहीं अब किंग बनना चाहते हैं छोटे दल, पंचायत चुनाव की आड़ में ढूंढ रहें सत्ता की चाभी
panchayat elections: देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में विधानसभा इलेक्शन (assembly elections) में दो साल बाकी हैं मगर सियासत की जमीन पहले से ही तपने लगी है। आठ महीने बाद होने वाले पंचायत चुनाव (panchayat elections) ने राजनीतिक दलों के बीच सरगर्मी और बेचैनी दोनों बढ़ा दी हैं। इसी गर्म माहौल में बीजेपी के दो पुराने सहयोगी निषाद पार्टी और अपना दल (एस) ने ये ऐलान करके सबको चौंका दिया है कि वे पंचायत चुनाव (panchayat elections) अपने दम पर लड़ेंगे। यह ऐलान सिर्फ एक चुनावी घोषणा नहीं बल्कि सत्ता के गलियारों में हलचल पैदा करने वाली रणनीतिक चाल है।
छोटे दलों के बड़े सपने
उत्तर प्रदेश की राजनीति में छोटे दल अब ‘किंगमेकर’ नहीं ‘किंग’ बनने की ख्वाहिश पाल रहे हैं। पंचायत चुनाव (panchayat elections) को 2027 के विधानसभा इलेक्शन (assembly elections) का सेमीफाइनल माना जा रहा है और इन दलों के लिए यह एक निर्णायक मोर्चा बन गया है। गांव-गांव तक फैले राजनीतिक समीकरणों को दुरुस्त करने की कवायद के बीच निषाद पार्टी और अपना दल (एस) ने यह समझ लिया है कि यदि उन्हें सत्ता की साझेदारी में अपनी शर्तें रखनी हैं तो पहले अपनी ताकत का प्रदर्शन ज़रूरी है।
अपना दल (एस): आधार तलाशती आकांक्षा
अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल की बातों में एक ऐसी नेता की झलक मिलती है जो अपनी पार्टी को महज़ सहायक दल के रूप में नहीं एक निर्णायक शक्ति के रूप में देखना चाहती हैं। प्रयागराज में मीडिया से बातचीत के दौरान अनुप्रिया के शब्दों में आत्मविश्वास भी था और पीड़ा भी। उन्होंने साफ कहा “केवल 10-12 विधायक बनाना ही हमारा लक्ष्य नहीं है। यह तो सिर्फ एक पड़ाव है , मंज़िल अभी दूर है।”
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उनके यह शब्द उनके भीतर की बेचैनी और महत्वाकांक्षा को बयान करते हैं। उन्होंने महसूस किया है कि बहुत से लोग संगठन से जुड़ना चाहते हैं मगर पार्टी की पहुंच अब तक सीमित रही है। पंचायत चुनाव (panchayat elections) उनके लिए महज़ राजनीतिक लड़ाई नहीं बल्कि पार्टी की आत्मा को ज़मीन से जोड़ने का अभियान है।
पहचान की खोज में निषाद पार्टी
इसी तरह संजय निषाद की आवाज़ में आत्मगौरव की लहर थी जब उन्होंने ऐलान किया कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (panchayat elections) उनकी पार्टी अकेले लड़ेगी। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा “अब वक़्त आ गया है जब निषाद समाज को उसकी असली राजनीतिक आवाज़ दी जाए। हर गांव हर बूथ पर निषाद पार्टी का झंडा लहराना है।”
उनकी यह पुकार किसी चुनावी रैली की गूंज मात्र नहीं थी बल्कि समाज की लंबे समय से दबाई गई आकांक्षाओं की पुकार थी। संजय निषाद जानते हैं कि पंचायत चुनाव (panchayat elections) दरअसल उनकी पार्टी के लिए जड़ों को और गहरा करने का ज़रिया है एक ऐसा मंच जहां वे न केवल अपने वजूद का प्रदर्शन करेंगे बल्कि राजनीतिक नक्शे पर अपनी जगह भी तय करेंगे।
गांव की राजनीति, जहां चुनाव नहीं चेतना बदलती है
उत्तर प्रदेश की लगभग दो तिहाई विधानसभा सीटें ग्रामीण क्षेत्रों से आती हैं और वहीं पंचायत चुनाव (panchayat elections) की असली जंग लड़ी जाती है। यह वो मैदान है जहां जातीय समीकरणों की बिसात बिछाई जाती है जहां हर वोट किसी रिश्ते जाति या विकास के वादे से जुड़ता है। इन इलाकों में दलों की पकड़ सिर्फ झंडे और पोस्टरों से नहीं बल्कि चौपालों की चर्चाओं और खेतों के किनारे होती है।
यही कारण है कि इन छोटे दलों ने अब पंचायत चुनाव (panchayat elections) को अपनी सियासी ताकत का लिटमस टेस्ट मान लिया है। इनका मानना है कि 2027 के विधानसभा इलेक्शन (assembly elections) की सौदेबाज़ी तभी सफल होगी जब पंचायत चुनाव (panchayat elections) में इनका परचम लहराए।
मगर क्या ये दांव उल्टा पड़ सकता है
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अकेले लड़ने का फैसला जितना साहसिक है उतना ही जोखिम भरा भी। भाजपा के साथ गठबंधन से मिलने वाला एकजुट वोट बैंक बिखर सकता है। विपक्षी दल खासकर समाजवादी पार्टी इसे मुद्दा बनाकर गांव-गांव तक भुना सकते हैं। ये संदेश भी जा सकता है कि NDA में सब कुछ ठीक नहीं है और जनता की धारणा पर इसका असर पड़ सकता है।
इन दलों की मंशा भले ही विधानसभा इलेक्शन (assembly elections) में अधिक सीटों की मांग को लेकर बार्गेनिंग पावर बढ़ाने की हो मगर अगर पंचायत चुनाव (panchayat elections) में प्रदर्शन फीका रहा तो यह पूरी रणनीति उल्टा असर डाल सकती है।
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उप्र के राजनीतिक परिदृश्य (UP politics) में ये चुनाव केवल पंचायत स्तर का नहीं है ये आत्मविश्वास पहचान और भविष्य की सत्ता की चाभी का संघर्ष है। अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद जैसे नेता आज सिर्फ सीटें नहीं सियासत में नई जगह नई परिभाषा चाहते हैं। पर क्या बिना गठबंधन की छाया के वे इस तेज धूप में सियासी फसल उगा पाएंगे।
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