तहव्वुर राणा को लाया गया, मेहुल चोकसी के बारे में क्या; जानें प्रत्यर्पण कैसे करता है काम
आज की परस्पर जुड़ी हुई दुनिया में जुर्म की कोई सीमा नहीं है। अपराधी अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और ऑनलाइन उपकरणों का इस्तेमाल करके न्याय से बचते हैं। अत: प्रत्यर्पण एक मुजरिम को एक देश से दूसरे देश वापस भेजने की प्रक्रिया है। हाल के वर्षों में भारत में कई सनसनीखेज मामले सामने आए हैं, जहां आरोपी व्यक्ति अन्य देशों में भाग गए हैं और उन्हें वापस लाने के लिए कानूनी और कूटनीतिक प्रयास किए गए हैं। तहव्वुर राणा और मेहुल चोकसी के मामले जीता जागता उदाहरण हैं।
प्रत्यर्पण क्या है और इसका उद्देश्य क्या
प्रत्यर्पण एक औपचारिक प्रक्रिया है जिसमें एक देश दूसरे देश से अनुरोध करता है कि वह किसी व्यक्ति को आपराधिक मुकदमा चलाने या सजा काटने के लिए अपने देश में वापस भेज दे। यह प्रक्रिया अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित है और देशों को अपराधियों को न्याय के दायरे में लाने में मदद करती है। प्रत्यर्पण का मेन मकसद ये सुनिश्चित करना है कि अपराधी भागने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं का इस्तेमाल न करें।
ये अंतर्राष्ट्रीय अपराधों से निपटने के लिए एक प्रभावी उपकरण है और देशों के बीच विश्वास और सहयोग बढ़ाने में भी मदद करता है। हालाँकि, प्रत्यर्पण एक मनमानी प्रक्रिया नहीं है बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय समझौतों, घरेलू कानूनों और न्यायिक समीक्षा पर आधारित है। इसलिए ये कानूनी रूप से कठिन और संवेदनशील प्रक्रिया है।
पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक तहव्वुर राणा पर 2008 के मुंबई हमलों में शामिल होने का आरोप है। हाल ही में उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि के तहत भारत प्रत्यर्पित किया गया था।
सन् 2023 में एक अमेरिकी संघीय अदालत ने राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी। राणा को हाल ही में सभी प्रक्रियाओं के बाद भारत लाया गया।
तहव्वुर राणा के बाद मेहुल चोकसी का नंबर
पंजाब नेशनल बैंक घोटाले का मुख्य आरोपी मेहुल चोकसी 2018 में भारत से भाग गया और एंटीगुआ की नागरिकता ले ली। 2021 में डोमिनिका में उन पर मुकदमा चलाया गया था। भारत उनके प्रत्यर्पण का प्रयास कर रहा है।
प्रत्यर्पण संधि: कानूनी आधार
प्रत्यर्पण संधियाँ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का एक मूलभूत साधन हैं। ये समझौते द्विपक्षीय या बहुपक्षीय होते हैं और इनमें नियम निर्धारित किए जाते हैं कि कौन से अपराध प्रत्यर्पण के योग्य हैं, प्रक्रिया क्या होगी तथा किन परिस्थितियों में प्रत्यर्पण से मना किया जा सकता है।
भारत की संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और संयुक्त अरब अमीरात सहित 40 से अधिक देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियाँ हैं। ऐसे समझौते अंतर्राष्ट्रीय अपराधों के अभियोजन को सुगम बनाते हैं।
प्रत्यर्पण के लिए जरुरी बुनियादी शर्तें
अपराध की प्रकृति गंभीर होनी चाहिए। छोटे अपराधों के लिए प्रत्यर्पण नहीं दिया जाता। ऐसे अपराधों के लिए प्रत्यर्पण नहीं दिया जाता।
अभियुक्त के विरुद्ध प्रथम दृष्टया साक्ष्य होना चाहिए। इससे राजनीतिक कारणों से अभियोजन चलाए जाने की संभावना से बचा जा सकता है।
दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि या आपसी समझ होनी चाहिए। कभी-कभी प्रत्यर्पण देशों के बीच किसी संधि के बिना, आपसी सहमति से होता है।
दोहरे खतरे का सिद्धांत
इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी अपराध को दोनों देशों में अपराध नहीं माना जाता है, तो उस स्थिति में प्रत्यर्पण नहीं हो सकता।
उदाहरण के लिए यदि किसी देश में मानहानि को जुर्म नहीं माना जाता है, तो दूसरे देश में मानहानि के आरोपी व्यक्ति के प्रत्यर्पण से मना किया जा सकता है। ये सिद्धांत निष्पक्षता के लिए अहम माना जाता है।
विशेषता का नियम
इस नियम के अनुसार, जब किसी व्यक्ति को किसी अपराध के लिए प्रत्यर्पित किया जाता है, तो उसे केवल उसी अपराध के लिए मुकदमे का सामना करना होगा, किसी अन्य नए जुर्म के लिए नहीं। ये नियम अपराधी के अधिकारों की रक्षा करता है और प्रत्यर्पण करने वाले देश की सहमति की सीमाओं को सुरक्षित रखता है।
निष्कर्ष
प्रत्यर्पण जरुरी है; लेकिन ये एक बहुत कठिन प्रक्रिया है। राणा और चोकसी के मामले बताते हैं कि प्रत्यर्पण के लिए कानूनी प्रक्रिया, राजनीतिक इच्छाशक्ति और मानवाधिकारों के संरक्षण के बीच संतुलन आवश्यक है।
आज के युग में जहां साइबर क्राइम, वित्तीय धोखाधड़ी और आतंकवाद सरहद पार की समस्याएं हैं, भारत जैसे देशों को अपनी प्रत्यर्पण संधियों को मजबूत करने, कानूनी प्रक्रियाओं को पारदर्शी रखने और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की जरूरत है; मगर ऐसा करते वक्त न्याय, पारदर्शिता और मानवाधिकारों का सम्मान बनाए रखना भी उतना ही जरूरी है।
इस पूरी प्रक्रिया का मूल ये है कि अपराधियों को कहीं भी शरण न मिले और न्याय किसी सीमा तक सीमित न रहे।