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बिहार में CM बनने की कुंजी बन चुकी है ये योजना, पिछली बार नीतीश ने, तो अब तेजस्वी ने भी वही अपनाया

बिहार एक बार फिर चुनावी मोड़ पर है और इस बार चर्चा के केंद्र में है – ‘लाडली बहना पॉलिटिक्स’। मध्य प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में जिस ‘कैश बेनिफिट फॉर विमेन’ मॉडल ने सत्ता बदलने या बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई वह अब बिहार के भी राजनीतिक लैंडस्केप को प्रभावित करने जा रहा है।

मौजूदा स्थिति में बिहार में महिलाओं (women voters in bihar) को ध्यान में रखकर बनाई गई योजनाएं चुनाव की सबसे बड़ी रणनीतिक चाल बनती जा रही हैं। तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) जहां ‘माई-बहिन मान योजना’ के तहत महिलाओं को हर महीने 2500 रुपए देने का वादा कर रहे हैं वहीं नीतीश कुमार (Nitish Kumar) सरकार भी ऐसी ही योजना पर काम कर रही है जो जुलाई 2025 तक लागू हो सकती है।

मगर क्या यह नया ट्रेंड है। क्या महिलाओं को साधना अब चुनाव जीतने की गारंटी बन चुका है। या फिर यह बिहार की राजनीति में कोई निर्णायक मोड़ लाने जा रहा है। इस लेख में हम इस पूरी राजनीति की परतें खोलेंगे।

‘लाड़ली पॉलिटिक्स’ की पृष्ठभूमि: राज्यों से शुरू हुई लहर

‘लाड़ली बहना’ जैसी योजनाओं की शुरुआत मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की थी। ‘लाडली बहना योजना’ के तहत वहां महिलाओं को सीधे बैंक खाते में एक हजार रुपए से 1250 रुपए प्रति माह ट्रांसफर किया गया। नतीजा ये हुआ कि 2023 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को महिला वोटर्स से जबरदस्त समर्थन मिला और सत्ता की वापसी हुई।

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झारखंड में भी हेमंत सोरेन की सरकार ने ‘सखी मंडल’ और महिला स्वरोजगार योजनाओं से ग्रामीण महिला वोटर्स को जोड़ा। महाराष्ट्र में भी शिंदे-फडणवीस सरकार ने ‘मुख्यमंत्री महिला सशक्तिकरण योजना’ के तहत महिलाओं को मासिक सहायता देने की दिशा में कदम बढ़ाया। इसी ट्रेंड को देखकर अब बिहार में भी राजनीतिक दल ‘कैश बेनिफिट स्कीम्स’ को चुनावी रामबाण मान रहे हैं।

बिहार में महिला मतदाता और संख्याओं में ताकत व फैसलों में असर

बिहार में ‘लाड़ली पॉलिटिक्स’ की चर्चा के पीछे संख्या का गणित भी है। चुनाव आयोग (EC) के अनुसार 1 जनवरी 2025 को जारी मतदाता सूची में बिहार में कुल मतदाता हैं 7.8 करोड़ जिसमें महिलाओं (women voters in bihar) की संख्या 3.72 करोड़ है। दिलचस्प बात ये है कि पिछले तीन विधानसभा चुनावों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया है-

  • 2010: पुरुषों का टर्नआउट 53% महिलाओं का 54.5%
  • 2015: पुरुष 51.1% महिलाएं 60.4%
  • 2020: पुरुष 54.6% महिलाएं 59.7%

ये आंकड़े इस बात का संकेत हैं कि महिला वोटर्स अब ‘डिपेंडेंट’ नहीं बल्कि ‘डिसाइडिंग फैक्टर’ बन चुकी हैं।

तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का नया दांव: माई-बहिन मान योजना

राजद नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने एक स्पष्ट संदेश दिया है: “अगर हमारी सरकार बनी तो महिलाओं को हर महीने 2500 रुपए दिए जाएंगे।” इस स्कीम का नाम है ‘माई-बहिन मान योजना’ जिसमें ‘माई’ यानी मुस्लिम-यादव और ‘बहिन’ यानी महिला वोटबैंक को जोड़ने की कोशिश की गई है।

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राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ये एक सॉफ्ट सोशल इंजीनियरिंग की कोशिश है कि जहां जाति और जेंडर दोनों को साथ जोड़ा जा रहा है। यह योजना जेडीयू और भारतीय जनता पार्टी गठबंधन के महिला वोटबैंक (women voters in bihar) में सेंध लगाने का प्रयास है।

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की रणनीति: इतिहास योजनाएं और ‘लाड़ला मुख्यमंत्री’

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का ट्रैक रिकॉर्ड देखें तो उन्होंने महिलाओं को लेकर कई योजनाएं चलाई हैं — जैसे-

  • साइकिल योजना (छात्राओं के लिए)
  • मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना
  • जीविका समूह (महिला स्वयं सहायता समूह)
  • शराबबंदी (जिसका लाभ सबसे ज्यादा महिलाओं को मिला)

राजनीतिक पंडितों का मानना है कि नीतीश का कोर वोटबैंक महिलाएं ही रही हैं खासकर ग्रामीण इलाकों में। यही वजह है कि भले ही भारतीय जनता पार्टी और नीतीश की जेडीयू में मतभेद हों पर महिला वोटर बेस अभी भी largely नीतीश के पक्ष में माना जाता है।

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सूत्रों के मुताबिक सरकार जुलाई 2025 तक महिलाओं को लेकर एक नई स्कीम लाने की तैयारी कर रही है — ताकि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के वादे का काउंटर किया जा सके। योजना का नाम ‘लाड़ली मुख्यमंत्री योजना’ हो सकता है हालांकि आधिकारिक पुष्टि अभी नहीं हुई है।

भाजपा की चुप्पी: रणनीति या कन्फ्यूजन

राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी को महिलाओं (women voters) का साइलेंट वोटर माना जाता है। चाहे 2019 का लोकसभा चुनाव हो या 2022 के यूपी चुनाव — महिला वोटर्स ने भाजपा को भरपूर समर्थन दिया।

मगर बिहार में भारतीय जनता पार्टी की रणनीति अभी तक साफ नहीं है। ऐसा लगता है कि पार्टी नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की योजनाओं पर निर्भर रहना चाहती है या फिर बाद में कोई अलग प्रस्ताव लेकर सामने आ सकती है।

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राजनीतिक विशेषज्ञ ओमप्रकाश अश्क कहते हैं “बिहार में महिला वोटर्स (women voters in bihar) नीतीश के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी रही हैं। ऐसे में तेजस्वी का ₹2500 वाला वादा कितनी सेंध लगा पाएगा ये देखना होगा।”

क्या ये योजना आधारित पॉपुलिज्म है या समाजिक सशक्तिकरण

विमर्श का एक पक्ष यह भी है कि क्या यह सीधा कैश ट्रांसफर पॉपुलिस्ट स्कीम्स हैं जो चुनाव जीतने के लिए लॉन्च की जाती हैं। या फिर ये महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की ईमानदार कोशिश है।

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सच्चाई दोनों के बीच है। जहां यह योजनाएं महिलाओं को फाइनेंशियल आजादी देती हैं वहीं इनका टाइमिंग और स्वरूप इन्हें राजनीतिक हथियार बना देता है।

चुनाव जीतने की कुंजी बन चुकी हैं महिला मतदाता

बिहार में महिला मतदाता (women voters in bihar) अब केवल संख्यात्मक उपस्थिति नहीं बल्कि चुनाव जीतने की कुंजी बन चुकी हैं। ‘लाड़ली बहना पॉलिटिक्स’ इस बात का प्रमाण है कि भारतीय राजनीति अब जेंडर सेंसिटिव नहीं जेंडर सेंट्रिक होती जा रही है।

आने वाले महीनों में जब बिहार का चुनावी पारा चढ़ेगा तब यह देखना दिलचस्प होगा कि महिला वोटर्स किस पर भरोसा जताती हैं — माई-बहिन मान योजना या लाड़ली मुख्यमंत्री योजना।

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