अच्छे काम के लिए जाते वक्त क्यों दी जाती है दही और चीनी, अंधविश्वास या विज्ञान; जानें
हमारे देश हिंदुस्तान में परंपराओं का एक अनोखा रंग है जो पुराने वक्त से चला आ रहा है। इनमें से एक है घर से किसी जरूरी काम के लिए निकलने से पहले दही और चीनी खाने की रीत। चाहे कोई नई नौकरी शुरू करने जा रहा हो परीक्षा देने जा रहा हो या कोई बड़ा सौदा करने माँ या दादी अक्सर एक छोटी कटोरी में दही और चीनी मिलाकर थमा देती हैं। कहा जाता है कि ये मिश्रण न केवल शुभ होता है बल्कि ये काम में आने वाली बाधाओं को भी दूर करता है। मगर क्या ये सिर्फ अंधविश्वास है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक आधार भी है। आइए इस परंपरा के पीछे की कहानी और इसके स्वास्थ्य लाभों को जानें।
दही और चीनी की परंपरा की जड़ें कहां तक
दही और चीनी की ये परंपरा भारतीय संस्कृति में गहराई से समाई हुई है खासकर उत्तर भारत में। दिल्ली की 65 वर्षीय गृहिणी रेखा यादव बताती हैं कि मेरी माँ मुझे बचपन से कहती थीं कि दही-चीनी खाने से मन शांत रहता है और काम में सफलता मिलती है। मैंने भी अपने बच्चों को यही सिखाया। ये प्रथा केवल हिंदू परिवारों तक सीमित नहीं है; इसे अलग अलग समुदायों में अलग-अलग रूपों में देखा जा सकता है। कुछ जगहों पर दही के साथ गुड़ खाया जाता है तो कहीं केवल दही को शुभ माना जाता है।
पुराणों और आयुर्वेद में दही को पवित्र और पौष्टिक माना गया है। संस्कृत में दही को ‘दधि’ कहा जाता है जिसे अमृत के समान माना जाता है। चीनी का मिश्रण इसे और स्वादिष्ट बनाता है और ये माना जाता है कि ये मिश्रण सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। मुंबई के इतिहासकार डॉ. सुरेश पाठक बताते हैं कि दही और चीनी का ये रिवाज संभवतः आयुर्वेदिक सिद्धांतों से प्रेरित है जहां भोजन को न केवल पोषण बल्कि मन और आत्मा के संतुलन के लिए भी अहम माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है
क्या ये परंपरा केवल विश्वास पर आधारित है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक तर्क भी है? पोषण विशेषज्ञ डॉ. अनीता शर्मा के अनुसार दही और चीनी का मिश्रण शरीर के लिए कई तरह से लाभकारी है। दही में प्रोटीन कैल्शियम और प्रोबायोटिक्स होते हैं जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं। चीनी ग्लूकोज का त्वरित स्रोत है जो मस्तिष्क और मांसपेशियों को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है। ये संयोजन विशेष रूप से गर्मियों में फायदेमंद है क्योंकि ये शरीर को ठंडक देता है और हीट स्ट्रोक से बचाता है।
दही में मौजूद लैक्टोबैसिलस जैसे अच्छे बैक्टीरिया आंत के स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं। गर्मियों में पेट खराब होने की समस्या आम है और दही इस जोखिम को कम करता है। चीनी हालांकि अधिक मात्रा में हानिकारक हो सकती है मगर थोड़ी मात्रा में ये तुरंत ऊर्जा प्रदान करती है जो किसी अहम कार्य से पहले उपयोगी हो सकती है। डॉ. पूजा कहती हैं कि ये मिश्रण न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी आपको तरोताजा रखता है।
लोगों की इस पर क्या राय
इस परंपरा का असर केवल वैज्ञानिक तथ्यों तक सीमित नहीं है; इसमें भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आयाम भी हैं। लखनऊ के 28 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर राहुल मिश्रा बताते हैं कि जब मैं अपनी पहली नौकरी के लिए इंटरव्यू देने जा रहा था मेरी माँ ने मुझे दही-चीनी खिलाया। मुझे नहीं पता कि ये शुभ था या नहीं मगर उस दिन मैं बहुत आत्मविश्वास महसूस कर रहा था। शायद ये मेरी माँ के प्यार और विश्वास का असर था। इसी तरह जयपुर की स्कूल शिक्षिका राधिका शर्मा कहती हैं कि मेरे लिए ये परंपरा मेरे परिवार से जुड़ाव का प्रतीक है। जब भी मैं घर से बाहर जाती हूँ मेरे पति मुझे दही-चीनी खिलाते हैं। ये छोटा-सा रिवाज मुझे घर की याद दिलाता है और मन को शांति देता है।
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आज के युग में जब लोग विज्ञान और तर्क को अधिक महत्व देते हैं क्या ये परंपरा अभी भी प्रासंगिक है? मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रिया गुप्ता का मानना है कि दही-चीनी खाने का मनोवैज्ञानिक लाभ भी है। “ये एक तरह का ‘प्लेसबो इफेक्ट’ हो सकता है। जब आप किसी कार्य से पहले कुछ शुभ करते हैं तो आपका आत्मविश्वास बढ़ता है। ये परंपरा आपको ये विश्वास दिलाती है कि आप अच्छा करेंगे।”
हालांकि कुछ लोग इसे केवल अंधविश्वास मानते हैं। दिल्ली के 22 वर्षीय छात्र आयुष कहते हैं “मुझे लगता है कि ये सब मन का वहम है। अगर आप मेहनत करते हैं तो दही-चीनी खाए बिना भी सफलता मिल सकती है।” फिर भी आयुष ये भी मानते हैं कि उनकी माँ की इस परंपरा में उनका प्यार झलकता है और वह इसे निभाते हैं ताकि उनकी माँ खुश रहें।
दही और चीनी की परंपरा केवल एक रिवाज नहीं है ये संस्कृति विज्ञान और भावनाओं का एक खूबसूरत मेल है। ये हमें हमारी जड़ों से जोड़े रखता है साथ ही शरीर और मन को तरोताजा करने में मदद करता है। चाहे आप इसे शुभ मानें या स्वास्थ्यवर्धक ये छोटा-सा रिवाज भारतीय परिवारों में प्यार और विश्वास का प्रतीक बना हुआ है।
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भारत की सांस्कृतिक विविधता इस परंपरा में भी झलकती है। उत्तर भारत में दही-चीनी सबसे आम है लेकिन दक्षिण भारत में कुछ समुदाय दही को नमक और मसालों के साथ खाते हैं जिसे ‘दही-भात’ के रूप में शुभ माना जाता है। तमिलनाडु की 40 वर्षीय गृहिणी लक्ष्मी राव कहती हैं “हमारे यहाँ दही-भात खाने का रिवाज है। मेरे पति जब व्यापार के लिए निकलते हैं तो मैं उन्हें थोड़ा दही-भात खिलाती हूँ। यह हमारे लिए शुभ है।”
पश्चिमी भारत में खासकर गुजरात और महाराष्ट्र में दही के साथ गुड़ या मिश्री का इस्तेमाल होता है। पुणे की 35 वर्षीय व्यवसायी नेहा पटेल बताती हैं कि मेरे परिवार में दही और मिश्री खाना जरूरी है। मिश्री की मिठास और दही की ठंडक हमें आत्मविश्वास देती है। पूर्वी भारत में विशेषकर बंगाल में मिठाई या दही के साथ शहद का उपयोग भी देखा जाता है। ये विविधता दर्शाती है कि दही का शुभ महत्व पूरे देश में फैला है भले ही इसके रूप अलग-अलग हों।