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खाने से पहले पानी में आम भिगोना जरूरी क्यों, जानें पीछे का वैज्ञानिक कारण

गर्मियों की तपती दोपहरी में जब हवा भी गरम साँसों की तरह लगती है और सूरज आसमान से आग बरसाता है, तब राहत की एक मीठी किरण बनकर हमारे जीवन में दस्तक देता है आम (Mango) जिसे लोग स्नेह से ‘फलों का राजा’ कहते हैं। इसकी मिठास, सुगंध और रसीले स्वाद में जैसे बचपन की छुट्टियों की यादें, दादी की डांट और बरामदे में बैठकर गुठली चूसने के वो मासूम पल समाए होते हैं। हर निवाला जैसे एक किस्सा सुनाता है कभी पेड़ से तोड़ा गया कच्चा टिकोला, तो कभी फ्रिज में ठंडा किया हुआ पका हुआ चौसा या दशहरी।

मगर क्या आपने कभी गौर किया है कि ज़्यादातर लोग इस स्वादिष्ट फल को खाने से पहले उसे एक बर्तन में पानी भरकर भिगोते (Why is it necessary to soak mango in water before eating?) हैं। ये कोई अंधविश्वास नहीं बल्कि एक पुरानी समझदारी का हिस्सा है जो हमारे पूर्वजों ने अनुभव से सीखा और पीढ़ी दर पीढ़ी हमें सौंप दिया। इस छोटी-सी प्रक्रिया में न केवल वैज्ञानिक कारण छिपे हैं बल्कि इसमें कुदरत से जुड़ने की हमारी परंपरा और शरीर को संतुलन में रखने की सूक्ष्म समझ भी मौजूद है। आईये जानते हैं-

1. गर्म होती है आम की तासीर (nature of mango is hot)

आम भले ही स्वाद में शहद की तरह मीठा हो मगर इसकी प्रकृति या आयुर्वेदिक भाषा में कहें तो तासीर गर्म होती है। इसका अर्थ है कि आम शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है। यह गर्मी कुछ लोगों के लिए सौम्य होती है, तो कुछ के लिए असहनीय। आम (Mango) का ज्यादा सेवन या बिना भिगोए सेवन करने पर कई बार मुंह में छाले, पेट में जलन, पसीने की चिपचिपाहट या फिर पूरे शरीर में हीट का एहसास होने लगता है। ये लक्षण उस आंतरिक असंतुलन का संकेत हैं जो शरीर गर्म खाद्य पदार्थों के संपर्क में आने पर देता है।

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जब आम को पानी में भिगोया जाता है, तो ये प्रक्रिया उस भीतर छिपी गर्मी को शीतल कर देती है जैसे तपते लोहे को पानी में डालकर ठंडा किया जाए। भिगोया हुआ आम न केवल स्वाद में तरोताजा होता है बल्कि ये शरीर में एक सुखद संतुलन भी बनाए रखता है। ये प्रक्रिया एक शांत अनुभव जैसी होती है जैसे लू के थपेड़ों के बीच ठंडे जल से नहाकर सुकून महसूस करना।

2. सतह की परतें: लेटेक्स और केमिकल्स का जाल (Mango is full of latex and chemicals)

जब हम किसी आम को अपने हाथ में उठाते हैं, तो उसकी सतह अक्सर चिकनी और थोड़ी चिपचिपी होती है। ये चिपचिपापन एक नेचुरल पदार्थ लेटेक्स की वजह से होता है। कुछ लोगों की त्वचा इस पर प्रतिक्रिया करती है और एलर्जी, खुजली या रैश जैसी समस्याएं सामने आ सकती हैं। पर ये तो केवल प्रकृति की बात हुई।

आज के वक्त में जब ज़्यादातर फल हमें बाजार से मिलते हैं तो आम की इस सुनहरी त्वचा के पीछे छिपे होते हैं रसायनों के कड़वे सच। पकाने की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए आमों पर अक्सर कैल्शियम कार्बाइड या अन्य रसायनों का छिड़काव किया जाता है। ये रसायन न केवल स्वाद को कृत्रिम बनाते हैं, बल्कि शरीर के लिए भी हानिकारक होते हैं।

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पानी में आम को भिगोना इस दोहरी समस्या का सरल मगर प्रभावी समाधान है। जब आप आम (Mango) को एक बर्तन में ठंडे पानी में डुबोकर कुछ देर के लिए छोड़ते हैं, तो मानो वह अपनी सतह से सारी अशुद्धियाँ त्याग देता है जैसे कोई ऋषि नदी में स्नान कर सारे विकार धो दे। इस भिगोने की प्रक्रिया से लेटेक्स और रसायनों की एक परत धुल जाती है, जिससे फल ज्यादा सुरक्षित और सौम्य हो जाता है।

3. पेट में हो सकती हैं ये समस्यां (These problems may occur in the stomach)

गर्मियों के दिनों में जब हमारा पाचन तंत्र पहले से ही धीमा और संवेदनशील होता है, तब गरम तासीर वाला आम यदि बिना भिगोए खाया जाए, तो यह पेट में भारीपन, गैस या अपच जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है। मगर जब यही आम पहले पानी में नहाया हुआ हो, तो जैसे वह शरीर के भीतर शीतलता का एक झोंका बन जाता है।

भिगोया हुआ आम न केवल हल्का होता है बल्कि इसमें मौजूद नेचुरल शुगर और फाइबर शरीर द्वारा बेहतर तरीके से आत्मसात किए जाते हैं। यह अनुभव वैसे ही है जैसे गर्मी में ठंडी छाछ पीना न केवल स्वादिष्ट बल्कि पाचन के लिए भी वरदान।

4. नेचुरल शुगर और ब्लड शुगर लेवल को रखेगा बैलेंस

आम में प्राकृतिक मिठास होती है जो हर किसी को लुभाती है बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक। मगर इसी नेचुरल शुगर का एक पहलू ऐसा भी है जो शुगर से पीड़ित या ब्लड शुगर के प्रति संवेदनशील लोगों के लिए चिंता का विषय हो सकता है।

जब आम को बिना भिगोए खाया जाता है, तो उसकी शुगर बहुत तेजी से शरीर में अवशोषित होती है, जिससे अचानक ब्लड शुगर लेवल में उछाल आ सकता है। मगर पानी में भिगोने से इस प्रक्रिया की गति थोड़ी धीमी हो जाती है। ये ग्लाइसेमिक इम्पैक्ट को नियंत्रित करता है जैसे तेज़ भागती गाड़ी को थोड़ी देर के लिए ब्रेक लगाकर फिर धीरे-धीरे आगे बढ़ने दिया जाए।

ये एक वैज्ञानिक तथ्य है मगर इसका प्रभाव हमारी दिनचर्या में बेहद व्यावहारिक रूप से झलकता है। भिगोया हुआ आम शरीर पर धीरे-धीरे असर करता है, जिससे इसका आनंद लंबे वक्त तक बना रहता है जैसे धीमी बारिश की बूंदें जो मिट्टी को चुपचाप भिगो देती हैं।

5. परंपरा में छिपी संवेदना

हमारे बुज़ुर्ग जब कहते थे कि आम को खाने से पहले पानी में भिगो दो तो शायद उनके पास वैज्ञानिक शब्द नहीं थे मगर अनुभव की गहराई जरूर थी। वे जानते थे कि ये छोटा-सा कदम शरीर, मन और भोजन के बीच संतुलन बना देता है।

इस भिगोने की प्रक्रिया में एक तरह की श्रद्धा भी है जैसे हम किसी प्रिय अतिथि को आने से पहले तैयार करते हैं। आम को पानी में रखना, उसे तर करना, जैसे हम उस फल को आदर से आमंत्रण दे रहे हों कि अब तुम हमारे भीतर आओ, मगर अपनी गर्मी बाहर छोड़ दो।

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