हर साल 5 जून को ही क्यों मनाया जाता है विश्व पर्यावरण दिवस, जानें इसका इतिहास
World Environment Day: ताजी हवा में सांस लेना, साफ पानी पीना और हरियाली से घिरा होना न केवल जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाता है बल्कि हमारे अस्तित्व की बुनियाद भी है। मगर आज के वक्त में ये बुनियाद हिलती नज़र आ रही है क्योंकि प्रदूषण दिन पर दिन एक विषैले बादल की तरह हमारे जीवन पर छाता जा रहा है।
धुएं से निकलते काले गुबार, कारखानों की चिमनियों से उठती जहरीली लहरें और धूलभरे शहरी आकाश ये सब तो प्रदूषण की तस्वीर का एक हिस्सा भर हैं। इसके अलावा भी कई अदृश्य पर गहरे प्रभाव डालने वाले कारण हैं बेवजह पानी बहाना, नदियों में कचरा डालना, पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और इंसानी लापरवाही का वो शोर जो प्रकृति की मौन पुकार को दबा देता है।
आज यही लापरवाही सांस से जुड़ी बीमारियों को जन्म दे रही है अस्थमा जैसी तकलीफें अब किसी गिने-चुने लोगों की नहीं, बल्कि हर उम्र के इंसानों की हकीकत बनती जा रही हैं। जैसे-जैसे हवा में ज़हर घुलता जा रहा है, वैसे-वैसे जीवन की मिठास फीकी पड़ती जा रही है।
ये भी पढ़ें- World Environment Day 2025: पर्यावरण दिवस या चेतावनी दिवस, हमारी जीवनशैली पर एक सवाल
कुदरत से जुड़ी समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक (pollution awareness) करने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। ये दिन उस मौन धरती की आवाज़ है जो हमें हर दिन जीवन देती है पेड़ों की सरसराहट में बहते झरनों की कल-कल में और पक्षियों के चहचहाने में। इस दिन जगह-जगह कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। कभी बच्चों द्वारा लगाए गए नन्हे पौधों के ज़रिए, तो कभी दीवारों पर बनी रंग-बिरंगी पेंटिंग्स के माध्यम से जो प्रकृति की पीड़ा को सजीव कर देती हैं।
इन आयोजनों का मकसद सिर्फ एक दिन का दिखावा नहीं बल्कि एक स्थायी चेतना जगाना होता है ताकि हर नागरिक अपने भीतर झांके और यह समझे कि धरती को बचाना हमारी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है।
विश्व पर्यावरण दिवस का इतिहास (History of World Environment Day)
इस दिन को मनाने का निर्णय 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्टॉकहोम में आयोजित एक ऐतिहासिक सम्मेलन में लिया गया था, जिसकी थीम थी पर्यावरण संरक्षण। ये सिर्फ एक अमीर लोगों की मीटिंग नहीं थी बल्कि धरती के घावों पर मरहम लगाने की एक वैश्विक शुरुआत थी। इसके दो साल बाद 1974 में पहली बार 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया और तब से ये दिन कुदरत और मानवता के बीच एक अटूट रिश्ता जोड़ने का प्रतीक बन गया।
प्रदूषण के पीछे सिर्फ फैक्ट्रियां नहीं, हमारी आदतें भी हैं
प्रदूषण केवल उन फैक्ट्रियों से नहीं आता जिनकी चिमनियों से काला धुआं निकलता है। ये हमारी जीवनशैली में छिपे उन छोटे-छोटे दोषों से भी उपजता है नलों को खुला छोड़ देना, इस्तेमालशुदा पानी को दूषित नालियों में बहा देना और जरूरत न होने पर भी वाहनों का इस्तेमाल करना।
हमने पहाड़ों पर बर्फ देखी है, नदियों के किनारे डेरा डाला है मगर अक्सर उनके सौंदर्य को बिगाड़ने में भी हम पीछे नहीं रहते। जब हम प्लास्टिक की बोतलें, खाने के पैकेट्स और अन्य कचरा वहीं छोड़ देते हैं, तो हम कुदरत के घावों पर अपने नाम की छाप छोड़ते हैं।
पर्यावरण संरक्षण भी जरूरी
पर्यावरण को बचाने की यात्रा दूसरों से नहीं खुद से शुरू होती है। जब कोई व्यक्ति यह तय करता है कि वह प्लास्टिक का उपयोग कम करेगा, पानी की एक-एक बूंद बचाएगा और हर महीने एक पौधा लगाएगा तो ये बदलाव धीरे-धीरे पूरे समाज को प्रभावित करता है।
ये भी पढ़ें- जानें क्यों जरूरी है पर्यावरण संरक्षण, हमारी लापरवाही छीन रही आने वाली पीढ़ियों का हक
हर छोटा कदम (eco-friendly habits) चाहे वो कागज़ के दोनों ओर लिखना हो, बिजली के उपकरणों को वक्त पर बंद करना हो या साइकिल से ऑफिस जाना हो इन सबसे एक बड़ा फर्क पड़ता है।
हर दिन को पर्यावरण दिवस बनाएं
विश्व पर्यावरण दिवस हमें सिर्फ एक दिन के लिए प्रकृति की ओर देखने को नहीं कहता बल्कि रोजाना उस पर ध्यान देने का आह्वान करता है। यह दिन हमें यह एहसास दिलाता है कि हम धरती के मेहमान नहीं उसके संरक्षक हैं।
जब हम पौधे लगाते हैं तो हम सिर्फ एक पेड़ नहीं उगाते हम एक आशा का बीज बोते हैं एक स्वच्छ, सुरक्षित और अच्छे भविष्य की उम्मीद। अगर हर व्यक्ति ये ठान ले कि वह प्रकृति की रक्षा करेगा तो हमारी आने वाली पीढ़ियां एक ऐसी धरती पर सांस ले सकेंगी जो हरी-भरी हो, जीवंत हो और प्यार से लिपटी हो।