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इलेक्शन जीता फिर भी नहीं बन पाईं राष्ट्रपति, आयरन लेडी के नाम से मशहूर ये नेता आज है जेल में कैद

जब भी दुनिया में मानवाधिकारों की बात होती है एक नाम अक्सर सामने आता है आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi )। म्यांमार की इस जानी-मानी नेता को न सिर्फ उनके संघर्षशील जीवन के लिए बल्कि उनके अटूट साहस और लोकतंत्र के लिए लड़ने की जिद के लिए भी जाना जाता है।

एक ऐसा जीवन जिसने आराम की बजाय संघर्ष को चुना। आज भले ही वह जेल में हों मगर उनकी विचारधारा और हिम्मत लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

बचपन से ही संघर्ष की छाया

19 जून 1945 रंगून (अब यांगून) में जन्मीं आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi ) का परिवार म्यांमार की आज़ादी की लड़ाई से जुड़ा रहा। उनके पिता जनरल आंग सान आधुनिक बर्मी सेना के संस्थापक थे और बर्मा की स्वतंत्रता के सबसे बड़े समर्थकों में से एक। दुर्भाग्यवश जब सू की केवल दो साल की थीं तब उनके पिता की हत्या कर दी गई।

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उनकी मां भी एक मजबूत राजनीतिक हस्ती थीं। 1960 में उन्हें भारत और नेपाल में बर्मा का राजदूत नियुक्त किया गया जिसके चलते सू की की पढ़ाई दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में हुई। बाद में उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से दर्शन राजनीति और अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी की।

अंतरराष्ट्रीय मंच से देश की सेवा तक

अपनी शिक्षा के बाद सू की ने संयुक्त राष्ट्र में तीन साल तक काम किया। इसी दौरान उनकी मुलाकात डॉ. माइकल ऐरिस से हुई जो तिब्बती संस्कृति के जानकार थे। दोनों ने शादी की और उनके दो बेटे हुए।

हालांकि उनका जीवन पश्चिमी दुनिया में सहज रूप से चल रहा था मगर जब म्यांमार में लोकतंत्र खतरे में आया तो सू की अपने देश लौट आईं — एक बार फिर संघर्ष के रास्ते पर।

लोकतंत्र की आवाज़ बनीं सू की

1988 में म्यांमार में जब सैन्य शासन के खिलाफ माहौल गर्म हुआ तो आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi ) ने खुलकर जन समर्थन में आवाज़ उठाई। उन्होंने नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) की स्थापना की और लोकतंत्र की लड़ाई का नेतृत्व किया।

उनके शांतिपूर्ण आंदोलन और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए उन्हें 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया।

मगर उनकी राह आसान नहीं थी। उन्हें कई बार नजरबंद किया गया बदनाम करने की कोशिश की गई मगर वे झुकी नहीं।

चुनाव जीता पर राष्टपति नहीं बन सकीं

2010 में उन्हें नजरबंदी से रिहा किया गया। इसके बाद 2012 में उन्होंने यूरोप जाकर अपना नोबेल शांति पुरस्कार औपचारिक रूप से स्वीकार किया।
2015 के आम चुनावों में सू की की पार्टी NLD ने भारी जीत दर्ज की। हालांकि संविधान में ऐसा प्रावधान था जिससे वे राष्ट्रपति नहीं बन सकती थीं फिर भी उन्हें सरकार में एक प्रमुख भूमिका दी गई और विदेश मंत्री बनाया गया।

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सत्ता के खिलाफ फिर एक साजिश

2020 में NLD को दोबारा चुनाव में शानदार जीत मिली। मगर इस बार सेना ने चुनावी धांधली का बहाना बनाकर संसद के पहले दिन ही तख्तापलट कर दिया।
आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi ) को अरेस्ट कर लिया गया और उन पर भ्रष्टाचार से लेकर कोविड प्रोटोकॉल के उल्लंघन तक कई आरोप लगाए गए।

32 साल की सजा मगर हौसला नहीं टूटा

दिसंबर 2021 में उन्हें चार साल की सजा सुनाई गई। इसके बाद जनवरी 2022 और फिर साल भर में विभिन्न मामलों में कुल 32 साल की सजा सुनाई गई। आज वह जेल में हैं मगर उनका संकल्प अब भी जीवित है।

उम्मीद की आखिरी किरण

दुनिया भर में लोग उन्हें “लोकतंत्र की आयरन लेडी” के रूप में याद करते हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि सत्ता बदल सकती है मगर विचार अमर होते हैं।

म्यांमार भले ही आज संकट में हो मगर सू की की विचारधारा और संघर्ष की भावना आने वाली पीढ़ियों को लोकतंत्र का मतलब समझाने में मदद करती रहेगी।

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