संभल की राजनीति में ‘घर की लड़ाई’ बनी सपा के लिए सिरदर्द, अखिलेश ने की थी सुलह की कोशिश
उत्तर प्रदेश की राजनीति का अहम केंद्र माने जाने वाले संभल जिले में एक बार फिर सियासी बवंडर उठा है। 24 नवंबर 2024 को शाही जामा मस्जिद सर्वे के विरोध में भड़की हिंसा अब न सिर्फ कानूनी मोड़ ले चुकी है बल्कि समाजवादी पार्टी (सपा) के भीतर दो ताकतवर मुस्लिम परिवारों बर्क और इकबाल के बीच वर्षों पुरानी अदावत को भी फिर से सतह पर ले आई है।
पुलिस जांच के बाद सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क पर आरोप तय करते हुए कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई है, वही उनके ही पार्टी के विधायक इकबाल महमूद के बेटे सुहैल इकबाल को साक्ष्य के अभाव में क्लीन चिट मिल गई है। दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही एक ही एफआईआर में नामजद थे।
दोनों परिवारों की राजनीतिक दुश्मनी की लंबी दास्तान
संभल की राजनीति में बर्क परिवार और इकबाल महमूद के नवाब परिवार का दबदबा दशकों पुराना है। दोनों ही समाजवादी पार्टी में शामिल हैं, मगर भीतरखाने एक-दूसरे के कट्टर विरोधी माने जाते हैं। चुनावी मैदान में इन दोनों परिवारों ने न सिर्फ एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी खड़े किए हैं बल्कि कभी-कभी खुलकर विरोध भी किया है।
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फरवरी 2024 में जब पूर्व सांसद डॉ. शफीकुर्रहमान बर्क का निधन हुआ, तब सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद इकबाल महमूद को साथ लेकर शोक प्रकट करने गए थे। तब लगा था कि दोनों गुटों के बीच अब मेल-मिलाप होगा। मगर नवंबर की हिंसा और उसके बाद आई जांच रिपोर्ट ने उस ‘सुलह’ की संभावनाओं पर ताला जड़ दिया।
2014 से जारी है तल्खी का सिलसिला
2014 लोकसभा चुनाव में जब डॉ. बर्क हार गए थे, तो उनके समर्थकों ने हार का ठीकरा इकबाल महमूद पर फोड़ते हुए उनके घर पर गोलीबारी तक कर दी थी। 2023 निकाय चुनाव में तो विवाद इस कदर बढ़ा कि इकबाल महमूद की पत्नी सपा प्रत्याशी थीं, मगर बर्क गुट ने खुलकर एक निर्दलीय प्रत्याशी का समर्थन कर दिया। नतीजा – सपा की हार।
गुटबाजी को और हवा दे गई FIR की एक गवाही
हिंसा के दौरान दर्ज एक प्राथमिकी में एक घायल व्यक्ति ने कहा था कि हमलावर तुर्क बिरादरी से थे वही बिरादरी जिससे बर्क परिवार आता है। वही इकबाल महमूद को अंसारी और अन्य जातियों का समर्थन मिलता रहा है। इस जातीय आधार पर खींची गई रेखाएं अब सपा के भीतर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही हैं।
क्या अब खुलकर आमने-सामने होंगे बर्क और इकबाल
बर्क गुट सांसद पर लगे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बता रहा है, वही इकबाल परिवार इसे ‘कानून की जीत’ कह सकता है। इससे दोनों खेमों के बीच तल्खी और गहरी होने की आशंका है।
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सपा जिलाध्यक्ष असगर अली ने पार्टी की ओर से बचाव करते हुए कहा कि सांसद हों या विधायक पुत्र, दोनों ही पार्टी के सम्मानित लोग हैं। कानून अपना काम कर रहा है। पार्टी की इसमें कोई भूमिका नहीं है।
हालांकि जानकारों का मानना है कि अब यह मामला सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि राजनीतिक मोड़ ले चुका है। जियाउर्रहमान बर्क लगातार यह कह रहे हैं कि वे जुल्म के आगे नहीं झुकेंगे और न्यायपालिका पर उन्हें पूरा भरोसा है।
क्या सपा सुलझा पाएगी अपने ही गढ़ की उल्झी राजनीति
समाजवादी पार्टी के लिए यह समय बेहद संवेदनशील है। एक ओर वह भाजपा के खिलाफ मजबूत विपक्ष बनने की कोशिश कर रही है दूसरी ओर अंदरुनी कलह उसका जनाधार खा सकती है। अगर सपा नेतृत्व समय रहते इस विवाद को नहीं सुलझा पाया तो संभल जैसी मजबूत सीट पर उसका वर्चस्व डगमगा सकता है।
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