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जानें क्यों जरूरी है पर्यावरण संरक्षण, हमारी लापरवाही छीन रही आने वाली पीढ़ियों का हक

World Environment Day 2025: सवेरे की पहली किरण जब दिल्ली के धुंधले आसमान को छूती है तो वो न केवल सूरज की रोशनी लाती है बल्कि एक कड़वी सच्चाई को भी प्रकाश में लाती है। हवा में घुला धुआं, नदियों में बहता कचरा और जंगलों का तेजी से सिकुड़ता दायरा – ये सब हमें एक सवाल की ओर ले जाता है कि क्या हम अपने पर्यावरण को बचाने के लिए पर्याप्त कर रहे हैं।

पर्यावरण संरक्षण आज केवल एक नारा नहीं बल्कि इंसानियत के अस्तित्व का आधार है। इस खबर में हम बात करेंगे कि पर्यावरण संरक्षण क्यों जरूरी है। इसके पीछे के वैज्ञानिक, सामाजिक और नैतिक कारणों को समझेंगे और ये भी जानेंगे कि हमारी लापरवाही का खामियाजा कौन भुगत रहा है।

पर्यावरण पर बढ़ता खतरा

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की नई रिपोर्ट की माने तो बीते एक दशक में वैश्विक टेम्परेचर में 1.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है और चरम मौसमी घटनाएं जैसे बाढ़, सूखा और तूफान अब असामान्य नहीं रहीं। भारत में स्थिति और भी गंभीर है। गंगा और यमुना जैसी नदियां प्रदूषण की चपेट में हैं और दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों की हवा सांस लेने लायक नहीं बची। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, देश के 100 से ज्यादा शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) नियमित रूप से ‘डेंजर’ कटेगरी में रहता है।

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ये आंकड़े केवल संख्याएं नहीं हैं; ये हमारे आने वाले कल की तस्वीर हैं। यदि हम अभी नहीं थमे तो आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ हवा, पानी और उपजाऊ जमीन जैसी बुनियादी जरूरतें भी नसीब नहीं होंगी। पर्यावरण संरक्षण इसलिए जरूरी है क्योंकि ये केवल पेड़-पौधों या जानवरों की बात नहीं बल्कि हमारे अपने अस्तित्व की बात है।

खराब पर्यावरण से खतरे में आजीविका

पर्यावरण संरक्षण का महत्व केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी समझा जा सकता है। भारत जैसे विकासशील देश में जहां लाखों जन आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजार रहे हैं। पर्यावरणी संरक्षण सबसे पहले इन्हीं समुदायों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए हिमालय में ग्लेशियरों के पिघलने से उत्तर भारत के किसानों की आजीविका खतरे में है क्योंकि सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो रही है।

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इसी प्रकार तटीय क्षेत्रों में समुद्र के बढ़ते जलस्तर ने मछुआरों और स्थानीय समुदायों को बेघर कर दिया है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट पर गैर करे तो पर्यावरणीय आफतों के कारण भारत को प्रतिवर्ष जीडीपी का 2-3 फीसदी नुकसान होता है। ये नुकसान केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक भी है, क्योंकि ये असमानता को और गहरा करता है। पर्यावरण संरक्षण इसलिए अहम है क्योंकि ये सामाजिक न्याय और आर्थिक स्थिरता का आधार है।

नागरिकों की क्या जिम्मेदारी

पर्यावरण संरक्षण एक नैतिक जिम्मेदारी भी है। हमारी धरती केवल हमारी नहीं है। ये उन अनगिनत प्रजातियों का भी घर है जो हमारे साथ इस ग्रह को साझा करती हैं। विश्व वन्यजीव कोष (WWF) के मुताबिक, बीते पचास सालों में धरती ने अपनी जैव विविधता का 68 फीसद हिस्सा खो दिया है। बाघ, गंगा डॉल्फिन और कई पक्षी प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर हैं। क्या हमारा कोई अधिकार है कि हम अपनी सुविधा के लिए इन प्रजातियों को खत्म कर दें।

और तो और हमारी अगली पीढ़ियों के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी है। क्या हम उन्हें एक ऐसी धरती सौंपना चाहते हैं जहां सांस लेना मुश्किल हो, जहां साफ पानी दुर्लभ हो और जहां प्राकृतिक सौंदर्य केवल पुस्तकों में बचा हो। पर्यावरण संरक्षण इसलिए जरूरी है क्योंकि ये हमारी नैतिकता का आईना है।

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पर्यावरण बचाने के लिए केवल सरकारों या बड़े संगठनों की ही जिम्मेदारी नहीं है। इसमें हर व्यक्ति की भूमिका अहम है। छोटे-छोटे कदम जैसे प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करना, पानी और बिजली की बचत करना और पेड़ लगाना इन सब से बड़े बदलाव ला सकते हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली में ‘चिपको आंदोलन’ की तर्ज पर स्थानीय समुदायों ने कई जंगलों को बचाने में कामयाबी हासिल की है।

सामूहिक स्तर पर हमें नीतिगत बदलावों की दरकार है। भारत सरकार ने 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को 50 फीसद तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। ये एक अच्छा कदम है मगर इसके साथ-साथ अवैध खनन, जंगल कटाई और औद्योगिक प्रदूषण पर सख्ती से रोक लगाने की जरूरत है। नागरिकों के रूप में हमें अपने जनप्रतिनिधियों से जवाबदेही मांगनी होगी और पर्यावरण के मुद्दों को चुनावी एजेंडे का हिस्सा बनाना होगा।

बदलाव संभव है, बशर्ते हममें इच्छाशक्ति हो

पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कई प्रेरक कहानियां भी हैं जो हमें उम्मीद देती हैं। राजस्थान के एक छोटे से गांव पीपलांत्री में गांव वालों ने सामूहिक प्रयासों से अपनी बंजर जमीन को हरे भरे जंगल में तब्दील कर दिया। इस पहल ने न केवल पर्यावरण को लाभ पहुंचाया बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत किया। इसी तरह सिक्किम भारत का पहला पूर्ण जैविक राज्य बना जिसने सतत कृषि को बढ़ावा दिया।

आपको बता दें कि पर्यावरण संरक्षण में नौजवानों की भूमिका अब पहले से कहीं ज्यादा अहम हो गई है। भारत के कोने कोने में स्कूल कॉलेज के छात्र ‘फ्राइडेज फॉर फ्यूचर’ जैसे आंदोलनों से प्रेरित होकर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। केरल के एक विद्यालय ने हाल ही में ‘प्लास्टिक-मुक्त परिसर’ अभियान शुरू किया। इस में छात्रों ने अपने स्कूल को पूरी तरह प्लास्टिक-मुक्त बनाया। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 60 फीसद से अधिक नवयुवक पर्यावरण संरक्षण को अपनी प्राथमिकता मानते हैं।

स्थानीय स्तर पर भी कई कोशिश देखने को मिली। मुंबई के वर्सोवा बीच की सफाई जो कभी कचरे का ढेर था, एक सामुदायिक प्रयास का शानदार उदाहरण है। वकील मोहम्मद शाह के नेतृत्व में सैकड़ों स्वयंसेवकों ने मिलकर इस समुद्र तट में फिर से जान फूंक दी। ये पहलें बताती हैं कि जब समुदाय एकजुट होता है, तो नामुमकिन भी मुमकिन हो जाता है। पर्यावरण संरक्षण इसलिए जरूरी है क्योंकि ये हमें एकजुट होने और सामूहिक शक्ति का एहसास कराता है।

 

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