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पंचायत इलेक्शन से पहले सपा का लिटमस टेस्ट, क्या गांवों में बनी रहेगी पकड़

पंचायत इलेक्शन (Panchayat Chunav News) जनवरी या फरवरी में होने की उम्मीद जताई जा रही है। सर्दियों की धुंधली सुबहों और खेतों में पसरी ओस की बूंदों के बीच गांवों की गलियों में एक बार फिर राजनीतिक सरगर्मी महसूस होने लगी है। ऐसे में 2027 से पहले होने वाले पंचायत इलेक्शन (Panchayat Chunav News) को लेकर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने अपनी रणनीतिक चादर को समेटना नहीं बल्कि और ज्यादा चौकस करना शुरू कर दिया है।

समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने इस बार की योजना में किसी भी ढील की गुंजाइश नहीं छोड़ी है। हर गांव, हर ब्लॉक में उसने अपनी टीमों को मोर्चे पर तैनात कर दिया है। यह केवल चुनावी प्रबंधन नहीं बल्कि एक सुनियोजित प्रयास है जिससे मतदाता सूची (Voter List) में किसी भी तरह की गड़बड़ी, किसी भी हेरफेर की गुंजाइश को खत्म किया जा सके। हर बीएलओ पर निगाह है, हर पंचायत कार्यालय में कान लगे हैं।

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हालांकि, अभी इस बात को लेकर संशय का कोहरा बना हुआ है कि समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) पंचायत इलेक्शन (Panchayat Chunav News) में अपने सिम्बल पर उम्मीदवार उतारेगी या फिर समर्थित उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी। पर जो स्पष्ट है, वो ये कि ये इलेक्शन समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के लिए सिर्फ एक स्थानीय मुकाबला नहीं बल्कि एक बड़े राजनीतिक भविष्य की झलक है।

विधानसभा चुनाव से पहले सपा का लिटमस टेस्ट

यदि राजनीतिक परिदृश्य को ग्रामीण नजरिए से देखा जाए, तो विधानसभा की लगभग दो तिहाई सीटें लगभग 269 सीटें इन्हीं गांवों की चौहद्दियों से निकलती हैं। ये वही रास्ते हैं जहाँ कभी बैलगाड़ियाँ चली थीं, अब वहीं से सत्ता की गाड़ी दिल्ली की ओर दौड़ सकती है। ये आंकड़ा न केवल विधानसभा के जादुई बहुमत के करीब है बल्कि उससे कहीं ज्यादा असरदार भी।

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इन पंचायत इलेक्शनों (Panchayat Chunav News) को सपा के लिए एक लिटमस टेस्ट माना जा रहा है एक ऐसा परीक्षण जो यह तय करेगा कि क्या पार्टी की जड़ें अभी भी गांव की मिट्टी में उतनी ही गहरी हैं जितनी पहले थीं। यदि इन ग्रामीण दिलों में सपा अपनी जगह फिर से बना पाई, तो यह विधानसभा के द्वार पर उसकी दस्तक मानी जाएगी।

जातिगत वोटबैंक पर पैनी नज़र

अब जबकि परिसीमन का काम शुरू हो चुका है और क्षेत्रवार आरक्षण की गुत्थियों को सुलझाने की कवायद तेज हो रही है, सपा अपने हर कदम को सधे अंदाज़ में रख रही है। पंचायत कार्यालयों और बीएलओ की बैठकों में उसकी सक्रियता सिर्फ औपचारिकता नहीं बल्कि रणनीति की हकीकत है।

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जातिगत वर्गीकरण को लेकर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) खास तौर पर चौकन्नी है। उसे पूर्व अनुभवों से यह आभास हो चुका है कि सत्ता पक्ष विशेषकर भाजपा संख्या के खेल में अपनी पकड़ दिखा सकती है। आंकड़ों की अदला-बदली, आरक्षण की गणना में असंतुलन और सीटों के वर्गीकरण में पक्षपात की संभावनाओं को लेकर सपा के रणनीतिकार सजग हैं।

पीडीए और कार्यक्रमों की नई परतें

‘पीडीए’पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक इस सामाजिक समीकरण को लेकर समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने अपने कार्यक्रम ग्राम स्तर तक उतारने की पुष्टि कर दी है। अखिलेश यादव स्वयं इस बात की तस्दीक कर चुके हैं कि इन वर्गों को साधे बिना कोई भी चुनावी जीत अधूरी है। गांवों में चौपालें लगेंगी, नुक्कड़ संवाद होंगे और इन वंचित वर्गों की बात को एक नई आवाज दी जाएगी।

ये पंचायत इलेक्शन (Panchayat Chunav News) केवल पदों के लिए नहीं बल्कि राजनीतिक चेतना के पुनर्जागरण का एक अवसर है। जहां एक ओर दल अपनी रणनीतियों की महीन सिलाई में लगे हैं, वहीं जनता की नजर भी अब सिर्फ नारों पर नहीं, नीतियों और नीयत पर टिकी है।

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