मायावती का यू-टर्न या दूरदर्शिता, आकाश आनंद को फिर से क्यों सौंपी गई बसपा की कमान
EELA INDIA
BSP Politics: उत्तर प्रदेश की गर्म दोपहर, बहुजन समाज पार्टी (BSP) के उच्चस्तरीय बैठक में एक ऐसा फैसला हुआ जिसने न सिर्फ पार्टी के अंदरूनी समीकरण बदल दिए बल्कि भारतीय राजनीति में नए समीकरणों की झलक भी दिखाई। मायावती (Mayawati) जिनकी राजनीतिक रणनीति में अकसर चुप्पी और अचानक लिए गए फैसले एक खास पहचान रखते हैं ने अपने भतीजे आकाश आनंद (Akash Anand) को फिर से पार्टी के केंद्र में ला दिया है, और इस बार एक निर्णायक भूमिका में।
नया अध्याय या पुरानी पटकथा
मायावती ने रविवार को दिल्ली में आयोजित वरिष्ठ नेताओं की बैठक में आकाश आनंद को मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक नियुक्त करते हुए साफ कर दिया कि अब पार्टी के भावी अभियानों और प्रचार रणनीतियों की कमान उन्हीं के हाथ में होगी। इससे पहले 2025 के मार्च में मायावती ने सार्वजनिक रूप से उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अनुशासनहीनता और बाहरी हस्तक्षेप के आरोपों के बाद ऐसा लग रहा था कि मायावती ने आकाश के लिए दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए हैं।
मगर राजनीति की शतरंज में ‘हमेशा’ जैसी कोई चीज नहीं होती। 13 अप्रैल को बाबा साहेब आंबेडकर की जयंती से ठीक पहले आकाश आनंद ने सोशल मीडिया पर सार्वजनिक माफीनामा जारी किया। उन्होंने साफ किया कि वे भविष्य में पारिवारिक हस्तक्षेप से पार्टी को दूर रखेंगे। महज सात घंटे बाद मायावती ने माफी को स्वीकार करते हुए उन्हें वापस पार्टी में ले लिया। अब कुछ ही हफ्तों में वे पार्टी के सबसे अहम पदों में से एक पर विराजमान हैं।
बिहार: पहला अग्निपरीक्षा केंद्र
फिलहाल बिहार राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। राज्यसभा सांसद और बसपा के वरिष्ठ समन्वयक रामजी गौतम जो बिहार के प्रभारी भी हैं को अब आकाश आनंद को रिपोर्ट करना होगा। यह इशारा है कि बसपा बिहार में एक नया चेहरा और नई रणनीति लेकर उतरने वाली है।
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यह समय भी कम रोचक नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी वहां दलित वोट बैंक (Dalit Vote Bank) को लेकर सक्रिय हैं। दलित समाज के बीच पैठ जमाने के लिए सभी दल जोर-शोर से लगे हैं। ऐसे में मायावती द्वारा आकाश आनंद को सामने लाना सिर्फ संगठनात्मक बदलाव नहीं बल्कि एक सियासी संकेत भी है कि बसपा अब केवल पुराने ढर्रे पर नहीं चलेगी।
युवा चेहरा, पुरानी विरासत
आकाश आनंद की उम्र अभी 30 के करीब है। दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) से पढ़े-लिखे सोशल मीडिया पर सक्रिय और शहरी युवाओं के बीच पहचाने जाने वाले इस नेता को मायावती एक “नए दौर के दलित नेता” के रूप में प्रोजेक्ट कर रही हैं। उनकी नियुक्ति दलित युवाओं को एक नया प्रतिनिधि देने की कोशिश है एक ऐसा चेहरा जो पुराने संघर्षों की विरासत को नए दौर की भाषा में सामने ला सके।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बसपा जो पिछले कुछ वर्षों से मूल वोट बैंक के खिसकने और राजनीतिक अप्रासंगिकता से जूझ रही है अब रीब्रांडिंग (Rebranding) की प्रक्रिया में है। और इसका पहला चरण है नेतृत्व का रूपांतरण।
जमकर हो रही आलोचना
जहां एक ओर पार्टी समर्थक इसे ‘नई ऊर्जा का संचार’ मानते हैं वहीं आलोचकों का कहना है कि बसपा में एक बार फिर ‘परिवारवाद’ की वापसी हो रही है। मायावती जिन्होंने मार्च में खुद घोषणा की थी कि “मेरे जीते जी पार्टी का कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा” अब उसी आकाश को पार्टी की रणनीति की धुरी बना रही हैं।
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मगर क्या इसे यू-टर्न मानना ठीक होगा। या यह एक राजनीतिक व्यावहारिकता है। दलित राजनीति का केंद्र बदल रहा है युवा वोटर सोशल मीडिया से प्रभावित हैं और राजनीतिक विमर्श अब ‘भावनात्मक अपील’ से ज़्यादा ‘डिजिटल ब्रांडिंग’ पर निर्भर करता है। ऐसे में आकाश आनंद जिनकी छवि सुलझी हुई पढ़ी-लिखी और सशक्त युवा नेता की है बसपा के लिए सांस्कृतिक व सामरिक निवेश बन सकते हैं।
संगठनात्मक संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती
हालांकि आकाश की राह इतनी भी आसान नहीं है। उन्हें अब तीन वरिष्ठ समन्वयकों रामजी गौतम, रणधीर बेनीवाल और राजाराम से रिपोर्ट लेनी है। इन नेताओं का अपना लंबा कार्यकाल और पार्टी के प्रति निष्ठा रही है। ऐसे में आकाश के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी पुराने और नए के बीच सामंजस्य बैठाना।
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अगर वे केवल मायावती की कृपा पर चलने वाले नेता बनकर रह जाते हैं तो संगठन में उनका स्वागत सीमित रहेगा। मगर यदि वे जमीनी कार्यकर्ताओं से संवाद करते हैं पुराने नेताओं को साथ लेकर चलते हैं और नए वोटरों तक पहुंच बनाते हैं तो वे बसपा के लिए ‘विज़नरी चेंजमेकर’ बन सकते हैं।
बसपा की ‘फिर से शुरुआत’
यह फैसला BSP के लिए सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन नहीं है बल्कि एक पुनःस्थापना (Recalibration) की प्रक्रिया है। मायावती को यह एहसास हो चुका है कि 90 के दशक का दलित आंदोलन अब उसी स्वरूप में वोट नहीं ला सकता। राजनीति बदल गई है। आज सोशल मीडिया की हेडलाइन ही जनता का एजेंडा बन जाती है।
आकाश आनंद जिनका सार्वजनिक बोलचाल और संवाद शैली आज के राजनीतिक माहौल से मेल खाती है बसपा को फिर से ‘डिजिटल युग की पार्टी’ बना सकते हैं; अगर उन्हें पर्याप्त स्वायत्तता और रणनीतिक आज़ादी दी गई तो।
मायावती का ये फैसला चुनावी मजबूरी है या दूरदर्शिता इस पर बहस हो सकती है। मगर एक बात तय है: बसपा अब एक संक्रमण काल से गुजर रही है और आकाश आनंद की नियुक्ति इस संक्रमण को दिशा देने वाला पहला बड़ा कदम है।
आने वाले महीनों में बिहार की सियासी ज़मीन (Bihar Politics) पर आकाश का परफॉर्मेंस तय करेगा कि वे वाकई में पार्टी के भविष्य हैं या सिर्फ एक राजनीतिक प्रयोग।
क्या आकाश उस जगह को भर पाएंगे जिसे कभी कांशीराम ने स्थापित किया और मायावती ने पोषित किया। या फिर यह केवल एक और पारिवारिक अध्याय बनकर रह जाएगा।
ये सवाल आने वाले चुनावों में जवाब मांगेंगे। अभी बस इतना कह सकते हैं कि बसपा में एक नई सुबह की आहट है। अब देखना है कि ये सुबह कितनी उजली होगी।