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असंतुलित रिलीजियस जनसंख्या वृद्धि भारत समेत वैश्विक समस्या

डॉ॰ प्रवेश कुमार चौधरी,

प्राध्यापक, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

हाल में बांग्लादेश में रह रहे हिन्दू(Hindu) समाज पर अत्याचार वही पश्चिम बंगाल(West Bengal) में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओ पर हो रहे हमलों ने एक बार पुनः असंतुलित धार्मिक जनसंख्या वृद्धि (Unbalenced Religious Population Growth) को जानने और समझने की आवश्यकता पर बल दिया है।

हम देखे की ब्रिटेन में प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर ने 8 दिसंबर  2006 को अपने के भाषण में कहा की “ कट्टर मुस्लिम उनका या कर्तव्य है की वह ब्रिटिश समाज तथा उसके परम्परा रीति -रिवाज आदि के अनुसार अपना आचरण करे। वही इन लोगों को इजाज़त नही है की वे देश के लोकतांत्रिक मूल्यों,सहिष्णुता तथा क़ानून का आदर जैसे मौलिक मूल्यों का आदर ना करे। हमारी सहिष्णुता ही ब्रिटेन को ब्रिटेन बनाती है। इसका आदर करे वरना यहा ना आए। हम ऐसे किसी भी नफ़रत फैलाने वाले लोगों को नही चाहते फिर चाहे वह किसी भी जाति एवं रिलिजन का हो।”

इतना ही नही ब्लेयर ने “मुस्लिम बुर्का उचित निषेध” का समर्थन करते हुए कहा कि यदि तमाम मुस्लिम वर्ग राज्य से किसी भी प्रकार की आर्थिक अनुदान चाहते है तो उन्हें यह दिखाना होगा की वे ब्रिटेन के मूल्यों के अनुसार अपना आचरण कर रहे है।”

वही जापानी जनरल ऑफ पोलिटिकल साइन्स (Journal of Political Science) के शोध (Research) पत्र के अनुसार भी असंतुलित धार्मिक जनसंख्या वृद्धि (Unbalenced Religious Population Growth) पर एक विस्तृत शोध छापा गया जिसमें इसके उपयुक्त कारक (Factors) इस प्रकार दिखाये गए।

मुस्लिम वर्ग में जनसंख्या वृद्धि का कारण टी॰एफ़॰आर॰ (T.F.R.-  Total Fertility Rate) में अधिकता है। कम उम्र में शादी जो कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार ही चलता है- मुस्लिम महिलाओ की प्रजनन(Pregnency) आयु अंतराल अधिक होना और मुस्लिम पुरुषों की शादी की अधिकता, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (Muslim Personal Law Board) के द्वारा पुरुषों के पक्ष में ही निर्णय देना आदि इसका मुख्य कारण है।

इसी शोध पत्र के अनुसार यह भी दिखाया गया कि “युद्ध, आन्तरिक अशांति, तंगी एवं परस्पर टकराव जिसमें धार्मिक टकराव के चलते व्यपत डर के वजह से भी मुस्लिम वर्ग में जनसंख्या वृद्धि (Population Growth) विस्फोट को कई देशों में देखा गया हैवही शांति प्रिय देशों में आवैधानिक घुसपैठ भी बढ़ी है”।

इसी प्रकार डेनमार्क के संदर्भ में Brian Arlv Jacobsen ने अपने एक शोध में यह पाया कि “किस प्रकार से इस्लाम मूल निवासी डनेस की रिलीजीयस डेमोग्राफ़ी (Religious Demography) को परिवर्तित कर रहा है उनका कनवर्जन कर इस्लाम का विस्तार कर रहा है”। जिसकी वजह से देश में कई समस्यो का जन्म हुआ है जिनमे आंतरिक सुरक्षा प्रमुख समस्या है।

इस से यह साबित होता है की इस्लाम का विस्तार (Expansion of Islam) भारत जैसे विकाशील देश पर ही नही बल्कि तमाम अन्य विकसित यूरोपीयन राष्ट्रों में भी एक समस्या पैदा कर रहे है।

इसके अलावा अन्य शोधो में भी माना गया की यूरोप(Europe) में इस्लाम(Islam) सबसे तेज़ी से बढ़ता हुआ धर्म(Religion) है। इसका उदाहरण के तौर पर फ़्रांस(France) में 50 लाख मुस्लिम रहते है जो की यूरोप की सबसे ज़्यादा मुस्लिम आबादी वाल राष्ट्र है।

इसी श्रेणी में जर्मनी(Germany) में भी 40 लाख मुस्लिम रहते है। फ़्रांस की रिपोर्ट के अनुसार जो फ़्रांस के मूल निवासियों का जन्मदर (Birth Rate) 1.4 बच्चे प्रत्येक महिला है। वही मुस्लिम महिलाओं में 3.4 से 4 प्रतिशत है।

फ़्रांस के चार्ल्स गेव जो की एक अर्थशास्त्री (Economist) हैं। वे बताते है कि – “इसी अनुपात में अगर जनसंख्या वृद्धि होती रही तो 2057 तक फ़्रांस मुस्लिम बहुल राष्ट्र हो जाएगा।”

ऐसी ही समान स्थिति हम भारत में भी देख सकते है जो कि मैं अपने लेख में ही दर्शा चुका हूँ कि कुछ ही दशकों में भारत के कई जिलो एवं क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी(Muslim Population) हिन्दू आबादी (Hindu Population) को काफ़ी पीछे छोड़ देगी।

हम देखे की म्यांमार ने मुस्लिम रोहँगिया को पहले अपने यहां शरण दी लेकिन कुछ ही वर्षों में वहां मुस्लिम वर्ग ने अपनी जनसंख्या में तीव्र वृद्धि कर म्यांमार में आन्तरिक अशांति पैदा करने का प्रयास किया। जिसका परिणाम म्यांमार ने इन्हें अपने देश से खदेड़ने को मजबूर किया।

आप देखे की एक शांतिपूर्ण देश भी असंतुलित धार्मिक जनसंख्या वृद्धि के कारण अशांत बना गया। इन्ही रोहँगिया को आज भारत का मुस्लिम वर्ग भारत में शरण देने की बात करता है।

क्या हम नही जानते की असम के 12 जिलो में आज हिन्दू  अल्पसंख्यक हो गया है। वही सम्पूर्ण भारत के 313 जिलो में कुल प्रजनन दर हिंदुओ की समान्य से भी कम है जबकि तालिका-3 के अनुसार देखा जा सकता है मुस्लिम बहुल जिलो में किस हिसाब से जनसंख्या की वृद्धि हो रही है।

हरियाणा के मेवात में अधिकतर गाँव हिंदू विहीन हो गये क्या? यह सच लोगों से छुपा है। हम देखे जहा भारत मुस्लिम घुसपैठ से जूझ ही रहा है वही वैश्विक स्तर पर भी मुस्लिम मतावलंबियो द्वारा किस प्रकार से डेमोग्राफ़िक बदलाव की मदद से कई देशों में दार-उल-इस्लाम को स्थापित कर लिया गया है।

यह दारुल इस्लाम जिसके बारे में पूज्य बाबा साहब अम्बेडकर ने वर्षों पहले चेताया था। डॉ.अम्बेडकर कहते है “मुस्लिम धर्म के सिद्धांतो के अनुसार विश्व दो हिस्सों में विभाजित है एक दार-उल-इस्लाम तथा दूसरा दार-उल-हर्ब है। मुस्लिम शासक से शासित देश को दार-उल-इस्लाम कहा जाता है। वही जहाँ मुसलमान रहते तो है परंतु वहा उनका शासक या शासन नही है, उसे दार-उल-हर्ब कहा जाता है”। यह दारुल इस्लाम बनाने की प्रक्रिया वर्षों की है जो दुनिया के साथ- साथ भारत में भी चली आ रही है।

इसी का प्रतिकार था कि देवेंद्रनाथ टैगोर ने 1867 में हिंदू मेला का आयोजन किया। वहीं, 1870 के दशक में बंकिम चंद्र चटर्जी (Bankim Chandra Chatterjee) ने ‘वंदे मातरम'(Vande Mataram) गीत लिखा। वही उनका उपन्यास आनंद मठ में एंटी-मुस्लि‍म (Anti Muslim) विचारों के चलते ही चर्चित हुआ।

1882 में बंकिम चंद्र चटर्जी ने राष्ट्र धर्म की भावना को ऊपर रखते हुए मुस्लिम शासकों (Muslim Rulers) के इतिहास को मानने से इनकार कर दिया था।

बंगदर्शन में प्रकाशित इस लेख  में बंकिम चंद्र लिखते हैं, ‘मेरे विचार से अंग्रेजी की किसी किताब में बंगाल का सही इतिहास नहीं लिखा है। इन किताबों में इधर-उधर की बाते हैं, जिसमें मुस्लिम शासकों के जन्म, मृत्यु और उनकी पारिवारि‍क कलह के अलावा ओर कुछ नहीं। हम देखे की ब्रिटिश भारतीय सेना के कुल मुस्लिम सैनिकों में से 90 प्रतिशत से अधिक ने विभाजन के समय पाकिस्तानी सेना में शामिल होने का चुनाव किया। विभाजन के तत्काल बाद 1947 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया और जम्मू एवं कश्मीर के एक-तिहाई भाग पर कब्जा कर लिया।

इन आक्रमणकारियो में वे मुस्लिम सैनिक भी ‌थे जो कभी आजाद हिंद फौज में शामिल थे। विभाजन के समय पाकिस्तान की तुलना में यदि सैन्य संतुलन भारत के विरुद्ध होता तो नए मुस्लिम राष्ट्र ने भारतीय सीमावर्ती मुस्लिम बहुल राज्यों-राजस्थान, गुजरात और यद्यपि बंगाल के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को निगलने का प्रयास किया होता, जहां मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से अधिक थी।

हिन्दूओ से भिन्न होने के भाव एवं अन्य मतावलंबियो को “काफिर” मानने की मानसिकता ने भारत के विभाजन के बीज बोए। लेकिन अफ़सोस इस बात का सदैव रहा है की इस देश के बौद्धिक जमात ने अपने को प्रगतिशील कहते हुए भी उन्होंने आज भी मुस्लिम और उसके नाम पर हो रही तुष्टिकरण की राजनीति का कोई प्रतिकार नही किया।

अगर हम रिलीजीयस जीओ पॉलिटिक्स (Religious Geo Politics) को देखे तो हिन्दू धर्म में विस्तारवाद नही है क्यूँकि हिन्दू ही एक मात्र धर्म है जो एक किताब, एक भगवान, एक पूजा पद्धति पर आधारित ना होकर विश्व मानव और बंधुत्व के विचार हिन्दुत्व में अगाध श्रद्धा रखता है।

इसलिए हमारे सब है और हम सबके है, इसके विपरीत विश्व के दो प्रमुख रिलिजन ईसाई, इस्लाम (मुस्लिम) यह रिलीजीयस विस्तारवाद में विश्वास रखते है जिसके अनेको उद्धारण है। जिसमें हम देखे की पूर्वी तिमोर जो कभी मुस्लिम बहुल होता था 1975 में यह इंडोनेशिया का हिस्सा भी हो गया, तब उसका रिलीजीयस डेमोग्राफ़िक संरचना में 20 प्रतिशत ईसाई थे जिसके बाद ईसाई मिशनरियों द्वारा रिलीजीयस कन्वर्ज़न (Religious Conversion) से दो दशकों में ही पूर्वी तिमोर में 95 प्रतिशत ईसाई हो गए और 5 प्रतिशत ही मुस्लिम बचे जो की आंतरिक विवाद का कारण बना और यू.एन.ओ.(UNO) के हस्तक्षेप से जनमत संग्रह द्वारा पूर्वी तिमोर फिर इंडोनेशिया से टूटा गया और एक नव राष्ट्र बना गया जिसमें बहुल आबादी ईसाई है। इसमें एक रोमांचित बात यह है की जिस ईसाई पादरी कार्लोस फ़िल्प जेमिस बेलो ने रिलीजीयस कन्वर्ज़न को अंजाम दिया उसे 1996 का “नोबेल शांति पुरस्कार” मिला।

वही सूडान (पूर्वी-दक्षिणी) जहा पर 60 अलग-अलग नृजातिय समूह (Ethnic group) थे जो की ईसाई एवं मुस्लिम के आपसी द्वन्द में समाप्त हो गये। इस विवाद का मूल कारण संसाधनो पर मुस्लिम वर्ग द्वारा क़ब्ज़े के प्रयास थे जिसने सूडान को दो हिस्सों में भी विभाजित कर दिया।

इसी प्रकार कोसोबो में भी इस्लामिक आतंक एवं जनसंख्या जेहाद ने सर्व रूढ़िवाद ईसाइयों को भगाने काम किया एवं उनका उत्पीड़न किया। जिसमें अलबनीयन (मुस्लिम) विद्यार्थियों द्वारा दंगे एवं अशांति फैलाई गई जिसमें कोसोबो का कई बार विभाजन देखने को मिला। अब कोसोबो की जनसंख्या में मुस्लिम जो 1921 में मात्र 65 प्रतिशत थे वही 2000 में 88 प्रतिशत थे, जो 2006 तक 95 प्रतिशत हो गए। बाँकी मतावलंबी कहा गये यह विचारणीय है।

वही नाईजेरिया में भी नृजातिय समूहों का रिलीजीयस आयडेंटिटी बेसेड कन्वर्ज़न मुस्लिम रिलीजीयस समूह द्वारा किया ऐसा देखा गया है।

इसी प्रकार से कोटेडिवोरिक में मुस्लिम बहुल वर्ग द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों पर अत्याचार की घटनायें अंजाम दी गई और आज भी जारी है।

घाना(GHANA) में इसी प्रकार ईसाई मिशनरियो द्वारा नृजातीय समूहों का रिलीजीयस कन्वर्ज़न किया गया है। इतिहास के पन्नो में पर्सिया में पारसियों को किस प्रकार बारी-बारी से ईसाई एवं मुस्लिम द्वारा उत्पीड़ित हो भारत की और भागना पड़ा है यह भी एक इतिहास है।

पूरे विश्व में इस्लाम और कट्टर इस्लाम, आतंक का परिचायक बन कर उभरा है। एक और महत्वपूर्ण विषय यह भी देखने को मिलता है जिसमें ईसाई मत के मानने वाले तो अंतर्राष्ट्रीय पटल पर संस्थानो की मदद  से राष्ट्रों का विभाजन कर अपना शासन स्थापित करते है वही इस्लाम यह सब कट्टरता और आतंक के दम पर करता है।

नोट- (ये लेखक के अपने निजी विचार हैं)

One thought on “असंतुलित रिलीजियस जनसंख्या वृद्धि भारत समेत वैश्विक समस्या

  • Knowledgeable article
    Thank you so much sir 🙏🏻

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