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UP Politics: 2026 पंचायत से 2027 विधानसभा तक, यूपी में भाजपा की चुनावी थ्योरी शुरू

UP Politics: उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हलचलें समय से पहले तेज़ हो गई हैं। 2026 में प्रस्तावित पंचायत चुनाव (Panchayat Election) और 2027 के बहुप्रतीक्षित विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अब किसी भी तरह की चूक नहीं चाहती। बीते विधानसभा चुनावों में सहयोगियों के खिसकने और जातीय समीकरणों के विखराव से जो नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा था उसे वह अब दोहराना नहीं चाहती। यही कारण है कि पार्टी रणनीति के स्तर पर पूर्वांचल को पुनः साधने की दिशा में सक्रिय हो गई है।

पार्टी की नजर इस बार राजभर समाज के मतों पर विशेष रूप से टिकी है। मंगलवार 10 जून को सीएम योगी (CM Yogi) द्वारा बहराइच में महाराजा सुहेलदेव की भव्य प्रतिमा का अनावरण इसी रणनीति का प्रतीक माना जा रहा है। सुहेलदेव जिन्हें राजभर समाज का ऐतिहासिक प्रतीक और सम्मान का केंद्र माना जाता है अब भाजपा की चुनावी राजनीति (UP Politics) का अहम चेहरा बनते दिख रहे हैं।

18 जिलों में राजभर समाज दबदबा

उत्तर प्रदेश के लगभग 18 जिलों में राजभर समाज का व्यापक प्रभाव माना जाता है। विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर, आज़मगढ़, मऊ, बलिया, जौनपुर ,देवरिया, बस्ती, कुशीनगर और गोरखपुर जैसे जिलों में यह प्रभाव न सिर्फ सामाजिक बल्कि चुनावी गणित को भी प्रभावित करता है। यही वजह है कि 2022 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के सपा के साथ जाने से भाजपा को सीधे तौर पर पूर्वांचल की कई सीटों पर नुकसान झेलना पड़ा।

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जानकारों का मानना है कि उत्तर प्रदेश की लगभग 30 विधानसभा सीटों और 10 लोकसभा क्षेत्रों में राजभर मतदाताओं की निर्णायक भूमिका है। सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर भले ही कभी भाजपा के साथ तो कभी विरोध में रहे हों लेकिन राजभर समाज की नब्ज दोनों ही पक्ष समझते हैं।

सुहेलदेव बनाम सालार मसूद

बहराइच में इस बार दशकों से लगने वाला सालार मसूद गाजी का मेला नहीं लगा। सरकार ने इसे ‘इतिहास के साथ अन्याय’ बताते हुए मेले को रोक दिया। इसके बजाय महाराजा सुहेलदेव को राष्ट्रनायक के तौर पर प्रस्तुत किया गया। भाजपा इसे सांस्कृतिक पुनरुत्थान बता रही है लेकिन विरोधी दल इसे ध्रुवीकरण की कोशिश करार दे रहे हैं।

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भाजपा के रणनीतिकारों की मानें तो यह सिर्फ एक मूर्ति अनावरण नहीं बल्कि उस ‘सांस्कृतिक सियासत’ का हिस्सा है जिससे पार्टी उन सामाजिक समूहों के दिल में जगह बनाना चाहती है जो अब तक किसी न किसी कारण से नाराज़ रहे हैं या दूसरी पार्टियों के पाले में खड़े दिखे।

पार्टी संगठन में बढ़ी राजभर भागीदारी

भाजपा पहले ही संकेत दे चुकी है कि 2027 की चुनावी लड़ाई वह गठबंधन की मजबूती के सहारे ही लड़ेगी। यही कारण है कि पूर्वांचल से आने वाले नेताओं को पार्टी में दोबारा सक्रिय किया गया है। अनिल राजभर को दोबारा मंत्री बनाया गया और सकलदीप राजभर को राज्यसभा भेजा गया—यह स्पष्ट करता है कि भाजपा अब ‘राजभर फैक्टर’ को नजरअंदाज करने की गलती दोहराने के मूड में नहीं है।

चुनाव से पहले सहयोगियों को साधने की कवायद

बीते लोकसभा चुनावों में उम्मीद से कम प्रदर्शन ने भाजपा को उत्तर प्रदेश में फिर से आत्ममंथन के लिए मजबूर किया है। पार्टी समझ रही है कि अकेले दम पर सत्ता बनाए रखना अब आसान नहीं रहा। इसलिए सहयोगियों को सम्मानजनक हिस्सेदारी देने और उनके सामाजिक आधार को साधने की नीति अब प्राथमिकता बन चुकी है।

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